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स्नेहा ने बच्चों के डायपर में तलाशा अपना कॅरियर और बना दी लाखों की कंपनी

अच्छी-खासी पढ़ी लिखी होने के बावजूद स्नेहा ठक्कर ने नौकरी नहीं की वरन बच्चों के डायपर का स्टार्टअप शुरु कर अपना खुद का बिजनेस सैट किया। आज वह इस मार्केट में बड़े-बड़े विदेशी ब्रॉन्डस को भी चुनौती दे रही है। जानिए उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी

Dec 08, 2020 / 05:10 pm

सुनील शर्मा

मेरा अनुमान है कि एक बच्चे को पॉटी-प्रशिक्षित होने तक 5,000 डिस्पोजेबल डायपर की आवश्यकता होती है। माता-पिता के लिए यह बड़ी लागत है। वहीं डिस्पोजेबल डायपर से जुड़े रसायनों, त्वचा पर इनके असर से लेकर लैंडफिल में इसके धीमे निपटान की दर स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को बढ़ाती है। इसके विपरीत मैंने पाया कि फैक्ट्री निर्मित धोने योग्य कपड़े के डायपर में काफी बचत है और यह पर्यावरण के लिए बहुत अच्छे हैं। कपड़े के डायपर को कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। पैरेंटिंग के दौरान मैंने यह सबक सीखा और इसे अपने कॅरियर में ढाल लिया।
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डायपर को इतने गौर से शायद ही कोई देखता होगा, जितना मैंने देखा। अपने पहले बच्चे के साथ मैंने डिस्पोजेबल डायपर के लोकप्रिय ब्रांड्स का उपयोग किया क्योंकि मुझे कोई बेहतर जानकारी नहीं थी। जब दूसरा बच्चा हुआ तो मैंने कपड़े के डायपर की खोज शुरू कर दी। मुझे लगा कि वे बच्चे की त्वचा पर अधिक कोमल होंगे, कम खर्चीले होंगे और पर्यावरण को अधिक नुकसान नहीं पहुंचाएंगेँ शुरू-शुरू में मैंने विदेशी कंपनियों के ऐसे डायपर खरीदे जो महंगे थे। बाद मैं मैंने महसूस किया कि भारत में इस सेगमेंट में कोई खिलाड़ी नहीं था, इसी के साथ मैंने अपना भविष्य डायपर में तलाश लिया। २०१६ में मैंने अपना स्टार्टअप लॉन्च किया।
पालन पोषण और पर्यावरण
अब भारत में कुछ और भी क्लॉथ-डायपर ब्रांड है। डायपर का बाजार ३०० मिलियन डॉलर होने का अनुमान है और मुझे लगता है कि हमारी कामयाबी इसमें छिपी हुई है कि हम माता-पिता को कितना आश्वस्त कर पाते हैं कि पैरेंटिंग का यह तरीका न केवल बच्चों के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत सुरक्षित है। वास्तव में यह पर्यावरण ही है, जिसमें हमारे बच्चों को बड़ा होना है।
नया करने के लिए न जाएं दूर
मुझे लगता है कि आपको कुछ करना है, कुछ पाना है तो अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। आपके आसपास ही ऐसा बहुत कुछ बिखरा हुआ है जो आपको प्रेरित कर सकता है। अपने आसपास के माहौल को बेहतर बनाने, चीजों को जिस तरह से आप करते आ रहे हैं, उनमें बदलाव करने भर के साथ आप वह पा सकते हैं जो आप पाना चाहते हैं। जरूरत निगाह उठाकर देखने भर की है।

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