कुंवारी लड़कियों के खून से नहाती थी महारानी, हैवानियत की कहानी सुनकर खड़े हो जाएंगे रोंगटे ! दरअसल, स्पेन में एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में पाया गया है कि यहां की कुल आबादी के सिर्फ 5 प्रतिशत (5% of Spanish population has antibodies) लोगों के पास कोरोनोवायरस एंटीबॉडीज पाए गए हैं जब की यहां संक्रमितों की संख्या लाखों में थी। ऐसे में माना जा रहा है कि ‘हर्ड इम्युनिटी’ ( herd immunity) से कोरोना से बचाव का रास्ता बेहद मुश्किल है। इतना ही नहीं ये लोगों के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है।
मेडिकल जर्नल द लांसेट (medical journal the lancet) में प्रकाशित शोध के मुताबिक अप्रैल में स्पेन में कोरोना अपने चरम पर था। इस दौरान यहां 250,000 से अधिक मामलों की पुष्टि की गई थी और 28,000 से अधिक मौतों हुई था। इन वजहों से ये माना जा रहा था कि स्पेन के काफी अधिक लोग इम्यून हो चुके होंगे.।लेकिन स्टडी में पता चला है कि अब तक स्पेन की सिर्फ 5 फीसदी आबादी ही इम्यून हो पाई है।
ऐसे में माना जै रहा है कि बिना वैक्सीन हर्ड इम्यूनिटी हासिल नहीं हो पाएगी। Lancet में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ये स्टडी काफी बड़ी थी और करीब 61 हजार लोगों के सैंपल लिए गए थे। अध्ययन के लेखकों के अनुसार, स्पेन की 95 फीसदी आबादी पर वायरस का खतरा अब भी मंडरा रहा है।
अध्ययन का पहला चरण 27 अप्रैल से 11 मई के बीच आयोजित किया गया था और दूसरे चरण के परिणाम 4 जून को जारी किए गए थे, जिसमें SARS-CoV-2 एंटीबॉडी का 5.2 प्रतिशत राष्ट्रीय प्रसार था। तीसरे चरण के परिणाम अगले सोमवार को जारी किए जाएंगे।
बॉब-कट हेयरस्टाइल वाले हाथी की पब्लिक हुई दीवानी, दिन में तीन बार होती है बालों की कंघी! वहीं स्पेन का मैड्रिड जहां कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा था वहां में 10 प्रतिशत का एंटीबॉडी प्रसार था, जबकि बार्सिलोना में 7 प्रतिशत एंटीबॉडी का प्रसार था। स्विटजरलैंड में किए गए इसी तरह के एक अध्ययन में पाया गया कि जिनेवा में आबादी लगभग 10.8 प्रतिशत कोरोनोवायरस एंटीबॉडी है।
हर्ड इम्युनिटी (herd immunity) क्या है? दरअसल, जब कोई बीमारी जनसंख्या के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो बाकी बचे लोग इससे सुरक्षित हो जाते हैं, यानी इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। ज्यादातर लोग इस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते है।
जैसे-जैसे ज़्यादा लोग इम्यून होते जाते हैं, वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का ख़तरा कम होता जाता है। इससे उन लोगों को भी इनडायरेक्टली सुरक्षा मिल जाती है जो ना तो संक्रमित हुए और ना ही उस बीमारी के लिए ‘इम्यून’ हैं। लेकिन कोरोना के केस में ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है।