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Birthday special : अटल जी ने इन्हें बताया था भारतीय राजनीति का ‘हनुमान’, एक किताब के चलते बदल गई पूरी जिंदगी

Published: Jan 03, 2019 03:13:12 pm

Submitted by:

Neeraj Tiwari

राजनीति में इस राजनेता का कद और पदवी ऐसी थी कि स्वयं भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें हनुमान कह कर बुलाते थे।

 jaswant singh

Birthday special : अटल जी ने इन्हें बताया था भारतीय राजनीति का ‘हनुमान’, एक किताब के चलते बदल गई पूरी जिंदगी

नई दिल्ली। आज भारतीय राजनीति के शिखर तक पहुंचे एक ऐसे राजनेता का जन्मदिन है जिन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा रहा होगा कि एक किताब के चलते उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया जाएगा। राजनीति में इस राजनेता का कद और पदवी ऐसी थी कि स्वयं भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें हनुमान कह कर बुलाते थे। आज वो राजनेता कोमा में हैं, लेकिन पंद्रह साल की उम्र में सेना से नौकरी शुरू करने वाले राजस्थान के इस लाल ने वित्तमंत्री और विदेश मंत्री जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं। 2001 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के खिताब से भी नवाजा गया। हम बात कर रहें हैं वरिष्ठ राजनीतिज्ञ जसवंत सिंह का जिनका आज के ही दिन 1938 में राजस्थान में बाड़मेर के जसोल गांव में जन्म हुआ था।

 

नहीं है अटल जी के न होने की खबर

हमेशा से ही जसवंत सिंह को अटल बिहारी वाजपेयी का बेहद करीबी माना जाता था। लेकिन आज जसवंत सिंह को अटल जी के दुनिया से जाने की खबर नहीं है, हालांकि इसके पीछे की वजह उनका कोमा में होना है। जसवंत के बेटे मानवेंद्र सिंह ने अपने ब्लॉक में भी इस बात का जिक्र भी किया करते हुए लिखा था कि, “मैंने अपने पिताजी को अटल जी की मौत की खबर नहीं दी है क्योंकि विज्ञान के चमत्कार पर मुझे इतना यकीन नहीं है कि अपने पिता की मौत का जोखिम उठाऊं। कुछ समय पहले वो ब्रेन हेमरेज की वजह से कोमा में चले गए हैं। फिलहाल, वो अपने दोस्त की मौत की खबर सह नहीं पाएंगे।”

 

अटल जी ने दी यह जिम्मेदारी

बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में जसवंत सिंह हमेशा ही हनुमान के रोल में रहे। बात 1998 की है जब पोखरण परिक्षण के चलते भारत आर्थिक प्रतिबंधों की आंधी में फंसा था। ऐसे में दुनिया को जवाब देने के लिए अटल जी ने जसवंत सिंह को ही आगे किया था। जसवंत सिंह स्वयं को उदारवादी नेता मानते थे यही कारण था कि वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने बाजार-हितकारी सुधारों को बढ़ावा दिया था।

 

इस किताब के चलते शुरू हुआ था पतन

2009 में सिंह ने ‘जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन, इंडिपेंडेंस’ नामक एक किताब लिखी। खास बात यह थी कि यह किताब भाजपा और आरएसएस की सोच से मेल नहीं खाती थी। ऐसे में उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हालांकि कुछ समय बाद फिर से उन्हें पार्टी में शामिल किया गया लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान के बाड़मेर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिए जाने के विरोध में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। जिसके चलते उन्हें फिर से 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

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