सुभाषिनी जी का जन्म साल 1943 में हुआ था। सुभाषिनी जी के कुल 14 भाई-बहन थे। इनमें से सात भाई-बहनों की मौत सूखे की चपेट में आ जाने से हो गई। इसके बाद मात्र 14 साल की उम्र में सुभाषिनी जी की शादी हो गई और 23 वर्ष की अवस्था में वो 4 बच्चों की मां बन चुकी थी। इसी बीच एक दिन सुभाषिनी के पति की तबीयत खराब हो गई। गांव में अस्पताल न होने के कारण उन्हें पति को जिला अस्पताल में ले जाना पड़ा। पैसे की कमी के कारण वो अपने पति को बचाने में नाकामयाब रहीं। इस घटना ने उन्हें अंदर तक हिलाकर रख दिया। उसी दिन से उन्होंने मन में ही इस बात का निश्चय कर लिया था कि अब गांव में इलाज के अभाव में किसी की भी मौत नहीं होगी।
उन्होंने न केवल अस्पताल बनाने की बात सोची बल्कि उस काम में भी जुट गई। उन्होंने सब्जी बेची, मजदूरी की,लोगों के घरों में काम किए। इन कामों के जरिए उन्होंने अपना घर भी चलाया, बच्चों का पालन-पोषण भी किया और मन में दबी इच्छा के लिए पैसे भी इकट्ठे किए। करीब 10,000 हजार रूपए एकत्रित कर लेने के बाद उन्होंने अस्पताल के लिए 1 एकड़ की जमीन खरीदी। साल 1993 में उन्होंने एक ट्रस्ट खोला और 1995 में अस्पताल की नींव रखी। उनके इस काम में गांववालों ने भी जमकर मदद किया। लेकिन ये काफी नहीं था क्योंकि अस्पताल कच्ची थी जिससे मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता था।
बारिश के दिनों में मरीजों का इलाज करने के लिए डॉक्टर्स को सड़क के किनारे शेड में बैठकर इलाज करना पड़ता था। इन उलझनों को दूर करने के लिए सुभाषिनी जी ने इलाके के सांसद से मदद की गुहार लगाई। सांसद, विधायक और स्थानीय लोगों ने साथ मिलकर फिर से अस्पताल का निर्माण किया। अस्पताल के बन जाने के बाद उद्धाटन के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल आए। राज्यपाल के आने से वहां मीडिया भी आई और धीरे-धीरे ये बात तमाम लोगों तक पहुंचने लगी।
आज Humanity Hospital के ट्रस्ट के पास तीन एकड़ जमीन है और कई बड़े लोग अब इस अस्पताल से जुड़ चूके हैं। शायद किसी ने ये सच ही कहा है कि यदि सच्चे दिल से किसी चीज को चाहो तो उसे पाने में पूरी कायनात आपकी मदद करती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सुभाषिनी जी के अलावा भला और क्या हो सकता है।