रिपोर्ट के मुताबिक, इन महिला कर्मचारियों को बिना लाइसेंस के इस तरह से अवैध दवाइयां दी जा रही हैं। ऐसा करने के पीछे कारखानों का मकसद है कि महिला श्रमिक पीरियड्स के दौरान छुट्टी न लें और काम करती रहें। रिपोर्ट के मुताबिक, बिना किसी डॉक्टर के सलाह के इन महिला कर्मचारियों को ये दवाइयां दी जा रही हैं। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है ये कारखाने इन महिलाओं से 10 घंटे का काम लेते हैं। कई महिला कर्मचारी ऐसी हैं जो ये नहीं चाहती कि किसी भी सूरत में उनके मजदूरी में कटौती हो। ऐसे में कारखाने से उन्हें दर्द कम करने की एक गोली दी जाती है। महिलाओं को दवा का नाम नहीं मालूम, वे उसे केवल उसके रंग से पहचानती हैं।
माहिलाओं ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से की गई बात में बताया कि दवा खाने के बाद उनका दर्द तो कम हो गया लेकिन इसके बाद उन्हें कई तरह की और समस्याएं होने लगी हैं। महिलाओं का दर्द कम करने के लिए उन्हें जो दवाइयां दी जाती हैं उन्हें उसकी एक्सपायरी डेट भी नहीं दिखाई जाती। रिपोर्ट में हुए खुलासे के बाद राज्य सरकार ने एक बयान जारी किया है कि वे इन महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच कराएगी।