कई बार घर के आसपास गाय और बछड़े के न मिलने पर गीली मिट्टी से गाय व बछडे़ को बनाकर उनकी पूजा की जाती है। इस व्रत में ध्यान रखने वाली बात यह है कि इस दिन गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं के सेवन की मनाही है।
जैसा कि हम जानते हैं कि हिंदू धर्म में गाय को मां का दर्जा दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। इसी वजह से गोवत्स द्वादशी के व्रत का पालन किया जाता है। खासतौर पर महिलाएं इसे मनाती हैं। किसी पुत्र संतान को प्राप्त माताओं के लिए इसे निष्ठापूर्वक मनाना काफी लाभकारी माना जाता है।
इस दिन महिलाएं घर-आंगन लीप कर चौक पूरती हैं और उसी चौक में गाय को खड़ी करके चंदन अक्षत, धूप, दीप और नैवैद्य इत्यादि से उन्हें विधिवत पूजती हैं। इसमें एक और चीज ध्यान में रखने वाली है और वह ये कि पूजा में धान या चावल का इस्तेमाल गलती से भी न करें। आप चाहें तो काकून के चावल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही इस दिन खाने में चने की दाल जरूर बनाई जानी चाहिए।
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय व बछड़ा न मिलने की स्थिति में गाय, बछड़ा, बाघ और बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं और उनकी विधिवत पूजा की जाती है।
जो महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं वे इस दिन किसी भी प्रकार के अनाज का सेवन नहीं कर सकती हैं और न ही दूध या दूध से बनी चीजों को खा सकती हैं।