गड्डे में जा फंसा 3 फूट लंबा सफेद कोबरा, जान की परवाह ना कर इस आदमी ने की मदद
उनका मानना है कि ऐसा करने से वे अपने पूर्वजों के प्रति आस्था दिखाते हैं। हर साल इस महीने यहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इस खास महीने में आपको ट्रेनों में बांस के डंडों पर नारियल लटका हुआ दिख जाएगा। ये पूरा संस्कार 7 दिन पहले शुरू होता है। पहले भगवदगीता पाठ का आयोजन होता है। इसके बाद सबसे पहले पितृदंड का ट्रेन में रिजर्वेशन कराया जाता है। वहीं बाकि के सदस्यों का टिकट बाद में कराया जाता है। पूरे रस्ते पितृदंड को बर्थ पर लिटाकर लाया जाता है। एक सामान्य यात्री की तरह टीटीई उनके टिकट चेक करते हैं। जो सदस्य पितृदंड के साथ सफर करते हैं वो दो-दो घण्टे बारी-बारी पहरा भी देते हैं। उनका ख्याल वैसे ही रखा जाता है जैसे एक बच्चे की सेवा की जाती है। पूरी सावधानी वे घर के सदस्य यहां अपने पूर्वजों को लाते हैं और उनका पिंडदान करते हैं।