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विजय दिवस: पति के शहीद होने के बाद इस वीर मां ने बेटा भी कर दिया देश के हवाले,किया पति का ख्वाब पूरा

साल 1971 की जंग में फतेहपुरा के राजबहादुर सिंह ने काफी बहादुरी दिखाते हुए पाकिस्तानी(Pakistan force) सेना को खदेड़कर उनकी चौकियों पर कब्जा करके अपने देश का तिरंगा फहराने में कामयाब हुए थे।

नई दिल्लीDec 15, 2020 / 06:55 pm

Pratibha Tripathi

victor pakistan 16 december 1971

नई दिल्ली। भारत के वीर सिपाही हमारे देश के लिए एक मजबूत दीवार बनकर खड़े रहते है। जिनकी मौजूदगी के चलते ही पूरा देश सुरक्षित रहकर अराम की नींद लेता है। लेकिन देश की सेवा में लगे वीर लोगों के साथ उनकी घर की महिलाएं भी किसी वीर महिला से कम नही होती हैं। क्योकि देश की सेवा में लगा हर वीर सिपाही अपने पीछे मां एंव पत्नि को छोड़कर जाता है। और जब वो शहीद होता है तो एक मजबूत दिल के साथ वही मां या पत्नि उन्हें आखिरी विदाई देकर उनकी देश भक्ति को सलाम भी करती हैं। और इतना ही नही देश की सेवा के लिए वो अपने घर के बच्चों को भी इसके लिए तैयार करने के लिए फिर से मजबूत हो जाती है।

ऐसा ही कुछ फतेहपुरा के रहने वाले शहीदों के घर देखने को मिला। साल 1971 की जंग में चौधरी ऊधम सिंह और फतेहपुरा के राजबहादुर सिंह ने काफी बहादुरी दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर उनकी चौकियों पर कब्जा करके अपने देश का तिरंगा फहराने में कामयाब हुए थे। लेकिन उसी दौरान गोली लगने से उनकी जान चली गई। पति के शहीद होने की खबर पाकर उनकी पत्नि कलावती भले ही टूट गई हो, लेकिन अपने साहस को नहीं छोड़ा। और पति के जाने के बाद अपने बच्चों को देशभक्ति की तालीम दी। दिन-रात मेहनत की। और आज के समय में शहीद के बेटे ही नहीं, नाती भी देश की सीमा की हिफाजत कर रहे हैं।

वीर नारी कलावती

बाह के फतेहपुरागांव के सूबेदार राजबहादुर सिंह सीमा पर हिल्ली चौकी पर तैनात थे। और वे 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की चौकी पर कब्जा करने वाले दल में शामिल रहे। उस दौरान उन्होंने अपनी जान गंवाकर अपने देश के तिरंगें को दुश्मनों की चौकी पर फहराया ही जान गंवाई। मरणोपरांत उनको वीर चक्र से नवाजा गया। उनकी शहादत के बाद वीर नारी कलावती ने पूरी हिम्मत के साथ अकेले रहकर बच्चों की परवरिश की। लेकिन पढ़ाई कर रहे दोनों बेटे रमेश भदौरिया और सुरेश भदौरिया के सामने कई बड़ी दिक्कतें भी आई।

घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के चलते कलावती को खेत-खलिहानों में काम करना पड़ा। और मेहनत करके दोनों बेटों को पढ़ाया। रिश्तेदारों ने ताने दिए लेकिन कदम नहीं डगमगाए। उनको सेना में भर्ती कराकर शहीद पति के ख्वाब को पूरा किया। लोग उनके पति की शहादत को भूल ना पाएं इसके लिए पति का याद में उन्होंने गांव में शहीद राजबहादुर सिंह के नाम पर प्रवेशद्वार बनवाया।

वीर नारी फुलहानी देवी

शहीद ऊधम सिंह का ख्वाब था कि उनके बेटे भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करें। पति के ख्वाब को पूरा करने के लिए वीर नारी ने खेतों में हल चलाया। लोगों के लिए घर पर चकिया से गेहूं पीसा। बेटों को तालीम दिलाकर सेना में भर्ती कराया। अनूप सिंह का बेटा अरविंद भी सेना में है।

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