लोकसभा का कोई भी सदस्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस लोकसभा अध्यक्ष को सौंप सकता है। इसके लिए अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस देने वाले सदस्य को एक लिखित पत्र लिखना होता है। बता दें कि संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के लिए विपक्षी दलों के कुल सदस्यों की संख्या कम से कम पचास होनी चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस मिलने के बाद लोकसभा अध्यक्ष उसकी जांच करते हैं, जिसके उचित पाए जाने के बाद ही उसे स्वीकार किया जाता है। जिसके दस दिनों के भीतर सरकार के खिलाफ स्वीकार किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है। अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष उस पार्टी या दल के किसी एक सदस्य को संसद में प्रस्ताव पेश का आदेश देते हैं।
अविश्वास प्रस्ताव के हालात तब पैदा होते हैं जब संसद में बैठे विपक्ष को ऐसा लगता है कि सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है। सीधे शब्दों में कहें तो सरकार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना उस स्थिति में करना पड़ता है जब विपक्षी दलों को लगता है कि उन्होंने सदन में मौजूद सदस्यों का बहुमत खो दिया है।
18 जुलाई को कांग्रेस और टीडीपी द्वारा लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस का कोई भी बुरा असर मोदी सरकार पर नहीं पड़ने वाला। क्योंकि लोकसभा में एनडीए गठबंधन के पास 311 सदस्यों का समर्थन है, जिससे विपक्षी पार्टी को पार पाना काफी मुश्किल पड़ जाएगा। फिलहाल मोदी सरकार को कोई चमत्कार ही परेशान कर सकता है।