कानूनी जानकारों के अनुसार, अगर मौत संदिग्ध परिस्थिति में हो और अंदेशा हो कि जहर से मौत हुई है तो विसरा की जांच की जाती है। जब भी संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के साथ-साथ कई बार विसरा की जांच की जाती है। व्यक्ति की मौत के बाद रासायनिक परीक्षण के लिए मृतक के लीवर, किडनी, आंतें सहित अन्य अंग लिए जातें हैं, इसे विसरा प्रिजर्व करना कहते हैं। विसरा सैम्पल को कैमिकल में संरक्षित रखा जाता है। विसरा सैम्पल की जांच फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री (एफएसएल) में की जाती है।
अगर किसी की एक्सीडेंट में मौत हो जाए या किसी की गोली मारकर हत्या कर दी जाए तो ऐसे शव का सिर्फ पोस्टमॉर्टम किया जाता है। ऐसे मामले में आमतौर पर विसरा जांच की जरुरत नहीं होती, लेकिन डेड बॉडी देखने के बाद अगर मौत संदिग्ध लगे यानी जहर देने की आशंका हो तो विसरा की जांच की जाती है। विसरा जांच में तब जरूर की जाती है जब डेड बॉडी नीली पड़ी हुई हो, जीभ, आंख, नाखून आदि नीला पड़ा हुआ हो या मुंह से झाग आदि निकलने के निशान हों तो जहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।