दिन रात पांच इन्द्रिय के अनुकूल शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श को पाने के लिए मेहनत करती रहती है। सभी सुख की सामग्री प्राप्त होने पर भी व्यक्ति सुख के स्वाद को प्राप्त नहीं कर पाता है। अधिक प्रयत्न करने पर भी सुखी बनने की इच्छा पूरी नहीं होती है। इसका मुख्य कारण यही है कि भौतिक पदार्थों में सुख ही नहीं है क्योंकि सुख आत्मा के भीतर ही रहता है। आत्मा के समस्त सुख का स्थन मोक्ष ही है।
मोक्ष में आत्मा देह से मुक्त होने से उन्हें कोई भी समस्या ही नहीं है। जीवन की सभी समस्याओं का मूल शरीर है। इस शरीर को टिकाने के लिए लाख मेहनत करें तो भी क्षणभंगुर यह शरीर अपने विनश्वर स्वभाव को छोड़ता नहीं है।