खंडहर बने आश्रय योजना के मकान[typography_font:14pt;” >हुब्बल्लीवर्ष 2009 में आई बाढ़ का शिकार हुए सिरगुप्पा तालुक के हच्चेल्ली गांव के बाढ़ पीडि़तों को राज्य सरकार की आश्रय योजना अब तक कोई राहत नहीं दे पाई है। एक दशक बीतने के बाद बाढ़ पीडि़तों को आश्रय योजना के मकान नहीं मिले हैं। अतिवृष्टि के दौरान बाढ़ पीडि़तों के बारे में संवेदना व्यक्त करने वाली सरकारें बाढ़ उतरने के बाद उन्हें भूल जाती हैं इसका यह सबूत है। वर्ष 2009 में आई भारी बाढ़ ने उत्तर कर्नाटक को अपनी चपेट में लिया था। पूरे गांव के गांव ही बाढ़ में बह गए। हजारों लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी। सिरगुप्पा के आसपास के ग्रामीणों के हालात भी ऐसे ही हुए थे। पहले ही खनन क्षेत्र के साथ बारिश से हुए नुकसान से त्रस्त लोगों की मदद के लिए सरकार के साथ ही खनन कम्पनियों के मालिकों ने भी आगे आकर मानवता की मिसाल कायम की थी। यहां की जमीन से करोड़ों रुपए अर्जित करने वाले खनन मालिकों ने बाढ़ पीडि़तों के लिए आश्रय मकानों का निर्माण करने का फैसला लिया था, इस पर लोगों ने भी खुशी जाहिर की थी परन्तु यह खुशी अधिक दिन नहीं रही। सरकार के 2011 में खनन पर प्रतिबंध लगाते ही खनन कम्पनियों ने मकान निर्माण कार्य अपूर्ण (अधूरा) छोड़ दिया। इससे नई छत मिलने की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को फिर निराशा हाथ लगी। जिला प्रशासन तथा कच्ची बस्ती उन्मूलन मंडल (स्लम बोर्ड) की ओर से 598 मकानों का निर्माण कार्य पूरा करने के बाद भी मकानों का आवंटन कार्य लंबित पड़ा है। मकान निर्माण करने वाली सरकार ने इसके लिए मूलभूत सुविधा उपलब्ध करने में विफल होने के कारण लोगों ने भी कैसे रह सकते हैं का सवाल उठाया। बाढ़ पीडि़तों की ओर से कई बार मांग करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ। बिजली, भूमिगत मलजल निकासी जैसी सुविधा प्राप्त नहीं करने के चलते लोगों ने भी मकानों में रहने की उम्मीद छोड़ दी। वर्ष बीतते ही मकानों के आसपास चारों ओर झाडिय़ां उगने से मकान रहने योग्य नहीं रह कर खंडहर बने हैं। दशक बीतते-बीतते मकान जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं तथा किसी उपयोग लायक नहीं रह गए हैं। करोड़ों रुपए खर्च कर मकान निर्माण करने वाली सरकार ने इन्हें उचित तौर पर आवंटित नहीं किया जिससे किसी को भी लाभ नहीं हुआ है।