कळकव्वा ने कहा कि अब लोग पहले की तरह रोजमर्रा की जिंदगी में बांस की टोकरी का इस्तेमाल नहीं करते। पहले हर घर में फल फूल रखने और रोटी आदि रखने के लिए इसका इस्तेमाल होता था। खासकर शादी ब्याह के मौसम में ये ज्यादा बिकते हैं क्योंकि शादी में उपहार पैक करने व भात आदि के लिए टोकरियों का उपयोग किया जाता है। अभी भी ग्रामीण इलाकों में टोकरियों में ही रोटी रखते हैं। सूपड़ा शादी ब्याह में होम हवन के समय में भी काम में लिया जाता है।
कळकव्वा ने कहा कि उनके पति रामप्पा पहले बुनकर का काम करते थे और साड़ी बुनते थे परन्तु बुनकर उद्योग में मंदी आने से वह उद्योग छोड़कर अब हम दोनों मिलकर यह उद्योग कर रहे हैं। बाजार में हम दो तीन लोग ही टोकरी व सूपड़ा बेचते हैं। शहरों में इनका चलन आधुनिकता के चलते उपयोग कम हो गया है। परन्तु ग्रामीण लोग अभी भी टोकरियों का उपयोग करते हैं। जब सुबह के समय में फुटपाथ पर टोकरियां व सूपड़ा बेचने के लिए लगाते हैं तो लॉअडाउन रहने से प्रशासन वाले घर को भेज देते है। इस समय तो टोकरी व सूपड़ा बेचने वाले आर्थिक संकट में दिन गुजार रहे हैं। वे कोरोना को शाप देते हुए पहले जैसे दिन आने की प्रार्थना कर रहे हैं।