संविधान विरोधी है जाति आधारित नागरिकता [typography_font:14pt;” >हुब्बल्लीभारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी कण्णन गोपीनाथन ने कहा है कि जाति के आधार पर नागरिकता देना संविधान विरोधी है। शहर के एक निजी होटल में गुरुवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में गोपीनाथन ने कहा कि पहली बार नागरिकता को जाति के आधार पर दिया जा रहा है। नागरिकता देना जाति आधारित नहीं होना चाहिए। मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर सीएए को लागू किया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के तमाम जिम्मेदार लोग कह रहे हैं कि सीएए नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता लेने का नहीं। सरकार जब सभी नागरिकों से उनकी नागरिकता का प्रमाण मांगने जा रही है तो इसका मतलब यह हुआ कि कोई नागरिक ही नहीं है तो आप नागरिकता छीनेंगे कैसे? इन्होंने नागरिकता संशोधन कानून की कवायद तो शुरू कर दी है, लेकिन उन्हें पता नहीं कि करना क्या है। गोपीनाथन ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून के जरिए केंद्र सरकार का कहना है कि हमारे तीन मुस्लिम पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान) में हिंदुओं और अल्पसंख्यकों को सताया जा रहा है, इसलिए हम उन्हें भारत की नागरिकता देना चाहते हैं। मुसलमानों के लिए कई इस्लामिक देश हैं। हिंदुओं का तो एकमात्र देश भारत ही है तो वे कहां जाएंगे?उन्होंने कहा कि यह मसला हिन्दु-मुस्लिम का नहीं देश के संविधान का मामला है। अफगानिस्तान से कोई सरहद नहीं मिलती है। इसे इसलिए सीएए में शामिल किया गया है कि ये तीनों देश मुस्लिम देश हैं। श्रीलंका तो बौध्द राष्ट्र है, वहां के तमिल नागरिकता मांग रहे हैं। उनको नागरिकता क्यों नहीं देना चाहती है सरकार। गोपीनाथन ने कहा कि सीएए के विरोध में किए जा रहे प्रदर्शन को दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं। हर जगह पुलिस का जुल्म और ज्यादती हो रही है जो बहुत गलत है। यह देश संविधान से चलेगा तानाशाही से नहीं चलेगा। शांति से विरोध करना हमारा अधिकार है। सरकार को जनता की आवाज सुनना चाहिए। देश की जनता को एनआरसी का बायकाट करना चाहिए, यह कानून हर जाति और धर्म के लिए नुकसानदायक है। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री के शब्दों से ऐसा लगता है कि दुनिया भर के हिंदू नागरिकता के लिए प्रयास कर रहे हैं और भारत के अलावा कोई भी देश उन्हें नागरिकता देने के लिए तैयार नहीं है। भले ही वे इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि कई देशों ने अपनी सहानुभूति से पहले ही हिंदुओं को नागरिकता दे दी है। उन्हें याद रखना चाहिए कि अगर उसी तरह की नागरिकता का पैमाना अन्य देशों की ओर से अपनाया जाता है, तो सबसे बड़ा नुकसान भारत को होगा। दुनिया में अन्य देशों के नागरिकों की सबसे बड़ी संख्या भारतीय नागरिक हैं। विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, एक करोड़ 75 लाख भारतीय अन्य देशों के नागरिक हैं। यदि वे देश भी धर्म को नागरिकता का पैमाना बनाते हैं, तो पौने दो करोड़ भारतीय तबाह हो जाएंगे। इसलिए, सिर्फ मुस्लिम शत्रुता की भावना और वोट बैंक के लिए देश की अखंडता और लाखों भारतीयों को दांव पर लगाने से देश नष्ट हो रहा है।कण्णन ने कहा कि अगर सरकार वास्तव में मजलूमों के प्रति सहानुभूति रखती है तो म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल को भी इस सूची में शामिल क्यों नहीं किया। हम इस नागरिकता संशोधन कानून की सख्त मुखालफत करते हैं। यह कानून संविधान के खिलाफ है। हम अमनपसंद लोग हैं। हम हमेशा अमन ही चाहते हैं। यह सरकार देश में अमन चैन नहीं चाहती, डर का माहौल पैदा कर रही है। ऐसे कानून से देश के हालात बिगड़ रहे है। जब तक इस काले कानून को वापस नहीं लिया जाता तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा। संवाददाता सम्मेलन में समाज परिवर्तन समुदाय के प्रमुख एसआर हिरेमठ, अश्रफ अली, पितांब्रप्पा बिलार, अनवर मुधोल, रामांजनप्पा आल्दल्ली समेत कई उपस्थित थे।