चित्रदुर्ग आरक्षित लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में अब 20 उम्मीदवार मैदान में बचे हैं। ऐसे में दो बैलेट यूनिट काम में ली जाएगी। संभवत इस लोकसभा क्षेत्र में पहली बार ऐसा हुआ है जब इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवार मैदान में है।
इस निर्वाचन क्षेत्र में 1952 से 2019 तक 17 आम चुनाव हुए हैं। 2019 में 19 उम्मीदवार मैदान में थे और 1996 में 18 उम्मीदवार मैदान में रहे थे। 2024 में कुल 24 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था, जिनमें से चार उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया और 20 मैदान में रह गए हैं। 1952 में हुए पहले चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एस निजलिंगप्पा समेत राजनीति के तीन दिग्गज मैदान में थे। 1980 तक लगातार चुनावों में केवल चार उम्मीदवार मैदान में थे। 17 चुनावों में से 12 चुनावों में दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं करने वाले उम्मीदवार मैदान में थे। दिलचस्प बात यह है कि पांच चुनावों में केवल तीन उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। 2009 के बाद उम्मीदवारों की सूची बढऩे लगी और दो अंकों को पार कर गई। 1996 में हुए आम चुनावों में इस निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक नामांकन पत्र दाखिल किये गए थे। कुल 45 प्रत्याशियों ने पर्चा दाखिल किया था। दो उम्मीदवारों के नामांकन अवैध घोषित कर दिए गए और 25 अन्य ने आखिरी दिन अपना नामांकन वापस ले लिया। इस हिसाब से 18 उम्मीदवार मैदान में रह गए थे।
राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों की स्वीकार्यता अधिक
1971 में 10 उम्मीदवारों ने अपने पर्चे दाखिल किए थे, जिनमें से सात ने नाम वापस ले लिया और तीन उम्मीदवार मैदान में रह गए थे। 2009 और 2014 में कुल 19 उम्मीदवारों में से पांच-पांच ने अपना नामांकन वापस ले लिया था। 2019 में 24 उम्मीदवारों ने अपना पर्चा दाखिल किया था, जबकि एक को अवैध घोषित कर दिया गया था, चार अन्य ने अपना नामांकन वापस ले लिया था। इतिहास से पता चलता है कि इस निर्वाचन क्षेत्र ने निर्दलीय उम्मीदवारों की तुलना में राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी है। इस सीट पर दो उम्मीदवारों के बीच सीधी टक्कर देखी जा रही है। निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त होती रही है।
पिछले चुनाव में 17 उम्मीदवार नहीं बचा पाए जमानत
चुनाव आयोग के अनुसार जो उम्मीदवार पंजीकृत कुल वोटों का 1/6 वोट हासिल करने में विफल रहेंगे, उनकी जमानत जब्त हो जाएगी। 1991 में पांच उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी, जबकि 1996 के चुनावों में उनकी संख्या तेजी से बढ़कर 15 हो गई। 1998 और 2004 के चुनावों में तीन-तीन उम्मीदवारों जबकि 2009 में 11 उम्मीदवारों ने अपनी जमानत खो दी। 2019 के लोकसभा चुनावों में 17 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाए।
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