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हुबली

Maharana Pratap Jayanti 2024: महाराणा प्रताप का जीवन प्रेरक, उनके साहस एवं शौर्य की जानकारी नई पीढ़ी तक पहुंचाएं

राजस्थान पत्रिका एवं राजस्थान राजपूत समाज संघ के संयुक्त तत्वावधान में महाराणा प्रताप जयंती महोत्सव पर संगोष्ठी

हुबलीJun 09, 2024 / 07:41 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

Maharana Pratap Jayanti 2024

हुब्बल्ली में महाराणा प्रताप जयंती महोत्सव पर आयोजित संगोष्ठी में मौजूद गणमान्य लोग।

शौर्य एवं साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप का जीवन प्रेरक था। इनके योगदान की जानकारी युवा पीढ़ी तक पहुंचनी चाहिए। महाराणा प्रताप अपने पराक्रम व शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। एक ऐसा राजपूत सम्राट जिसने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की। उन्होंने देश, धर्म एवं स्वाधीनता के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया। महाराणा प्रताप जयंती महोत्सव पर रविवार को यहां गब्बूर गली स्थित रामदेव मंदिर परिसर में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह बात कही। राजस्थान पत्रिका हुब्बल्ली एवं राजस्थान राजपूत समाज संघ हुब्बल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि महाराणा प्रताप ने वीरता का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह अद्वितीय है।
वक्ताओं ने कहा, उन्होंने जिन परिस्थितियों में संघर्ष किया, वे वास्तव में जटिल थी, पर उन्होंने हार नहीं मानी। यदि राजपूतो को भारतीय इतिहास में सम्मानपूर्ण स्थान मिल सका तो इसका श्रेय मुख्यत: राणा प्रताप को ही जाता है। उन्होंने अपनी मातृभूमि को न तो परतंत्र होने दिया न ही कलंकित। विशाल मुगल सेनाओ को उन्होंने लोहे के चने चबाने पर विवश कर दिया था। मुगल सम्राट अकबर उनके राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाना चाहते थे, किन्तु राणा प्रताप ने ऐसा नहीं होने दिया और आजीवन संघर्ष किया। संगोष्ठी के प्रारम्भ में राजस्थान पत्रिका हुब्बल्ली के संपादकीय प्रभारी अशोक सिंह राजपुरोहित ने महाराणा प्रताप की जीवनी पर प्रकाश डाला।
उनका पराक्रम भारतीय इतिहास में अद्वितीय
समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान राजपूत समाज संघ हुब्बल्ली के अध्यक्ष पर्बतसिंह खींची वरिया ने कहा, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। इसी दिन महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जाती है। मुगलों की विराट सेना से हल्दी घाटी में उनका भारी युद्ध हुआ। वहा उन्होंने जो पराक्रम दिखाया, वह भारतीय इतिहास में अद्वितीय है। उन्होंने अपने पूर्वजों की मान-मर्यादा की रक्षा की और प्रण किया की जब तक अपने राज्य को मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक राज्य-सुख का उपभोग नहीं करेंगे। तब से वह भूमि पर सोने लगे। वह अरावली के जंगलो में कष्ट सहते हुए भटकते रहे लेकिन उन्होंने मुगल सम्राट की अधीनता स्वीकार नहीं की। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया।
समय एकजुटता दिखाने का
राजस्थान राजपूत समाज संघ हुब्बल्ली के सचिव रिड़मल सिंह सोलंकी सिवाना ने कहा, अभी समय एकजुटता दिखाने का है। हमारे इतिहास को भुलाया जा रहा है। हम नई पीढ़ी को हमारे गौरवमयी इतिहास से परिचित कराएं। आने वाले समय में हम महाराणा प्रताप के साथ ही पृथ्वीराज राठौड़ समेत अन्य महापुरुषों की जयंती भी मनाएं। महाराणा प्रताप मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिए अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप ने मुगलो को कई बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था।
महल व सुख-सुविधाएं त्याग दीं
राजस्थान राजपूत समाज संघ हुब्बल्ली के वरिष्ठ सदस्य सांगसिंह महेचा नौसर ने कहा, महाराणा प्रताप ने समूचे हिन्दुस्तान की रक्षा की थी। अपने महल व सुख-सुविधाएं त्याग दी लेकिन पराधीनता स्वीकार नहीं की। बचपन से ही महाराणा प्रताप साहसी, वीर, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रताप्रिय थे। महाराणा प्रताप की वीरता के साथ-साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है। अरविन्द सिंह सोढ़ा बिठूजा ने कहा, महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर हिन्दू धर्म को बचाया। मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते ही उन्हें अभूतपूर्व संकटों का सामना करना पड़ा, मगर धैर्य और साहस के साथ उन्होंने हर विपत्ति का सामना किया। कम उम्र में ही अपने अदम्य साहस का परिचय दे दिया था। खुमान सिंह भायल पादरड़ीकला ने कहा, महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का समय पहाङों और जंगलों में व्यतीत हुआ। अपनी पर्वतीय युद्ध नीति के द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी। यद्यपि जंगलो और पहाङों में रहते हुए महाराणा प्रताप को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पङा, किन्तु उन्होने अपने आदर्शों को नही छोङा। महाराणा प्रताप के मजबूत इरादो ने अकबर के सेनानायकों के सभी प्रयासों को नाकाम बना दिया।
दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुरुआत
शिरोमणि महाराणा प्रताप की तस्वीर के सामने पूजन व दीप प्रज्ज्वलन के साथ संगोष्ठी की शुरुआत की गई। इस अवसर पर राजस्थान राजपूत समाज संघ हुब्बल्ली के सदस्य किशनसिंह भाटी, नारायणसिंह बालावत काठाड़ी, सुमेरसिंह बालोत गुड़ा बालोतान, भवानी सिंह महेचा डंडाली, मदनसिंह भायल पादरड़ीकला, राजपुरोहित समाज के खेतसिंह ऊण समेत अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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