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राष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी खेत में काम करने को मजबूर

locationहुबलीPublished: Jun 04, 2021 07:40:51 pm

Submitted by:

S F Munshi

राष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी खेत में काम करने को मजबूर

राष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी खेत में काम करने को मजबूर

राष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी खेत में काम करने को मजबूर

राष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी खेत में काम करने को मजबूर
-नेशनल टूर्नामेंट में चार बार पदक हासिल कर चुकी है
कोल्हापुर
राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धा में चार बार पदक हासिल कर चुकी सांगली की महिला कुश्तीगीर संजना बागडी अब गन्ने के खेत में काम रही है। मैदान बंद होने से आर्थिक स्रोत बंद हुआ है जिससे कुश्ती के मैट के बजाय काली मिट्टी में पसीना बहा रही है। कुश्तीपंढरी होने वाले सांगली, कोल्हापुर का दातृत्व कहां गया यह सवाल इस समय उपस्थित किया जा रहा है।
महिला कुश्ती क्षेत्र में आघाडी की युवा कुश्तीगीर के तौर पर संजना ने नाम कमाया है। कर्तृत्व सिद्ध किया है। दिल्ली, पुणे, पाटण और बल्लारी में हुई राष्ट्रीय स्पर्धा में उसने पदक हासिल किए लेकिन कोरोना के कारण देशभर में कुश्ती स्पर्धाएं रद्द हुई। देश भर में होनेवाले यात्रा और मैदान भी रद्द हुए जिससे आर्थिक स्रोत रुका। स्पर्धा में मिलने वाला मानधन और बख्शीस का आर्थिक स्रोत भी रुका। लॉकडाउन के कारण उसकी कारकीर्द भी लॉक हुई है।
सांगली के पास तुंग (तहसील मिरज) में संजना रहती है। पिताजी खंडू कृष्णा नदी में मछली मारकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। बारहवीं कक्षा में पढऩे वाली संजना कुश्ती की बख्शीस से खुद का खर्चा उठाती है। वह पिताजी पर बोझ नहीं बनती लेकिन लॉकडाउन के चलते और कोई पर्याय भी नहीं है। राष्ट्रीय खिलाड़ी का सराव और आहार का एक माह का खर्चा 50 से 70 हजार रुपए होता है लेकिन संजना यह खर्चा पांच से सात हजार रुपए तक निभा रही है। कृष्णा नदी में जलस्तर बढऩे से पिताजी का मछली पकडऩा बंद है लेकिन संजना का खर्चा रुकेगा नहीं जिससे वह खेत में काम करने जा रही है। वहां पर उसको 300 रुपए मजूरी मिलती है। इससे खुद और कुछ हद तक घर का खर्चा भी निकलता है।
मैदान बंद है लेकिन संजना ने अपना सराव रुका नहीं है। सुबह व्यायाम, तैरना के जरिए अपनी तंदुरुस्ती रखती है। शाम को कवलापुर में उत्तमराव पाटील के कुश्ती केंद्र में पिताजी लेकर जाते हैं।
कहां गई लोगों की दानवीरता?
संजना जैसी प्रतिभावंत राष्ट्रीय कुश्तीगीर को खर्चे के लिए खेत में काम करना पड़ रहा है। इससे सांगली के लोगों की दानवीरता कहां गई, यह सवाल इस समय उठाया जा रहा है।
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