धारवाड़ निर्वाचन क्षेत्र में राष्ट्रीय पार्टियों का ही दबदबा रहा है। अब तक हुए 17 चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की है। इनमें से 10 बार कांग्रेस और 7 बार भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं। एक की जीत को छीनने वाले निर्दलीय दूसरे की जीत में योगदान दिया है।
एक और मठ प्रमुख से मुकाबला
1952 और 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। उसके बाद निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। किसान संगठनों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। मठाधीश की ओर से भी प्रयास किया गया था परन्तु मतदाता मात्र निर्दलीय उम्मीदवारों को तरजीह नहीं दी। 2004 में कन्नड़ नाडु पार्टी से चुनाव लडऩे वाली माता महादेवी को करीब 25 हजार वोट मिले थे। इस चुनाव में पहली बार जीत की मुस्कान बिखेरने वाले प्रल्हाद जोशी के सामने अब एक और मठ प्रमुख से मुकाबला है।
1952 और 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। उसके बाद निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। किसान संगठनों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। मठाधीश की ओर से भी प्रयास किया गया था परन्तु मतदाता मात्र निर्दलीय उम्मीदवारों को तरजीह नहीं दी। 2004 में कन्नड़ नाडु पार्टी से चुनाव लडऩे वाली माता महादेवी को करीब 25 हजार वोट मिले थे। इस चुनाव में पहली बार जीत की मुस्कान बिखेरने वाले प्रल्हाद जोशी के सामने अब एक और मठ प्रमुख से मुकाबला है।
रणनीति के साथ मैदान में उतरे हैं दिंगलेश्वर स्वामी
क्या दिंगालेश्वर स्वामी प्रल्हाद जोशी की जीत को रोकेंगे? क्या खुद विजयी होंगे? या अन्य पार्टी के उम्मीदवार की जीत का कारण बनेंगे? किसकी वोट की टोकरी में दिंगालेश्वर स्वामी हाथ डालेंगे, इस पर रहस्य बना हुआ है। इसे लेकर धारवाड़ संसदीय क्षेत्र में तीखी बहस शुरू हो गई है। दिंगलेश्वर स्वामी अपनी ही रणनीति के साथ मैदान में उतरे हैं।
क्या दिंगालेश्वर स्वामी प्रल्हाद जोशी की जीत को रोकेंगे? क्या खुद विजयी होंगे? या अन्य पार्टी के उम्मीदवार की जीत का कारण बनेंगे? किसकी वोट की टोकरी में दिंगालेश्वर स्वामी हाथ डालेंगे, इस पर रहस्य बना हुआ है। इसे लेकर धारवाड़ संसदीय क्षेत्र में तीखी बहस शुरू हो गई है। दिंगलेश्वर स्वामी अपनी ही रणनीति के साथ मैदान में उतरे हैं।