कोई किसी का नहीं, यह भावना न रखें
कोई किसी का नहीं, यह भावना न रखें

कोई किसी का नहीं, यह भावना न रखें
-डॉ. समकित मुनि ने कहा
इलकल (बागलकोट).
कस्बे के श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित धार्मिक सभा में जैन संत डॉ. समकित मुनि ने कहा कि कोई किसी का नहीं की भावना की अपेक्षा सभी के प्रति सद्भावना रखनी चाहिए। ईर्ष्या, घृणा, व्देष की भावना रखने वाले का कर्मबंध होकर नरक में जाता है। अगर कोई आपकी गलती बताकर सावचेत करता है तो उसके प्रति दुर्भावना न रखते हुए सद्भावना रखनी चाहिए। कोई ग़लत कार्य कर रहा है और दूसरा उसको टोकता है तो वह हमारा दुश्मन नहीं बल्कि सेण है ऐसा समझना चाहिए। उन्होंने अनेक महापुरुषों व महासतियों के उदाहरण के जरिए बताया कि एक दूसरे का जीवन तारने के लिए किस प्रकार सहायक बने। उन्होंने कर्मठ का उदाहरण देते हुए कहा कि उसकी दुश्मनी उसके छोटे भाई के साथ हो गई। इस दुश्मनी के पीछे बड़े भाई कमठ की गलती थी। फिर भी वह छोटे भाई का दुश्मन बना हुआ था और यह सिलसिला नौ जन्मों तक चला। कमठ शरीर से तपस्वी बन गया, परन्तु उसमें दुर्भावना भरी थी। बड़ा भाई तपस्वी बन गया है यह जानकर छोटा भाई मिलने जाता है और बड़े भाई के चरणों में शीश झुकाता है और बड़ा भाई पत्थर से हत्या कर देता है। बुरी भावना किसी के भी प्रति नहीं रखनी चाहिए। परिवार में भाइयों के बीच मनमुटाव होकर एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। एक भाई दूसरे भाई से हजारों किमी की दूरी पर रहता है। फिर भी उसके प्रति दुर्भावना रखेंगे और पाप कर्मों का बंध करेंगे। पाप से बचकर मोटर्स जाना है तो सबके साथ प्रेम, सौहार्द, समन्वय से रहना चाहिए। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। कब क्या होगा कोई नहीं जानता। फिर इस जिंदगी पर इतराना नहीं चाहिए। सास-बहू या बहू सास का किसी बात पर टोका-टोकी हो गई है और कोई गलती का अहसास कराता है तो उसका अहसान मानना चाहिए। सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों के साथ बाद में रिश्तेदारों के साथ उच्च भावना रखनी चाहिए। परिवार में प्रेम, स्नेह रहेगा तो भगवान भी आपकी मदद करने को आ जाएंगे। संत डॉ. समकित मुनि ने कहा कि आंखों की शर्म व लज्जा का बहुत महत्व है। एक बार आंखें बेशर्म हो गई तो बेड़ा गर्द में जाना निश्चित है। आधुनिकता की चकाचौंध में रिश्तों की मर्यादा को लेकर बेपरवाह हो रहे हैं। आजकल देखने में आता है कि सास-ससुर के साथ बेटी-जंवाई, बहू- बेटे के साथ फिल्म देखने या घूमने जाने हैं। फिल्म के दृश्य सभी देखते हैं। अब शर्म या लज्जा कहां रहेगी। इसलिए सभी को अपनी मर्यादा में रहते हुए जीवन- बसर करना चाहिए। अनेक बार गलती न होने पर भी सजा मिल जाती है। महिलाएं अपने पेट में पल रहे शिशु का गर्भपात करा देती है। इसमें शिशु का क्या दोष है कि जन्म से पहले ही मौत हो जाती है। भ्रूण हत्या पाप ही नहीं महापाप है। किसी को भी ऐसे पाप का कार्य नहीं करना चाहिए। दुर्भावना, घृणा-व्देष से कोसों दूर रहते हुए सभी के प्रति मन से सद्भावना रखनी चाहिए। आज बागलकोट के श्रावक व श्राविकाओं का संतों के दर्शनार्थ आगमन हुआ। अंत में मंगलपाठ फऱमाया। शनिवार का व्याख्यान सुबह साढ़े नौ बजे शुरू होगा। दोपहर में संत यहां से विजयपुर की ओर विहार करेंगे।
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