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साधु धर्म बिना संभव नहीं है संवर और निर्जरा का आचरण

locationहुबलीPublished: Jul 30, 2021 02:08:35 am

Submitted by:

S F Munshi

साधु धर्म बिना संभव नहीं है संवर और निर्जरा का आचरण

साधु धर्म बिना संभव नहीं है संवर और निर्जरा का आचरण

साधु धर्म बिना संभव नहीं है संवर और निर्जरा का आचरण

साधु धर्म बिना संभव नहीं है संवर और निर्जरा का आचरण
-आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा
विजयपुर
यहां पाश्र्व भवन में आयोजित प्रवचन में जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि साधु धर्म बिना संवर और निर्जरा का आचरण संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि बारहवी सदी में जैन शासन की ध्वजा को दिग्-दिगंत तक फैलाने वाले कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्रसूरी ने वीतराग-स्तोत्र ग्रंथ में परमात्मा की स्तुति करते हुए कहा कि हे वीतराग परमात्मा, आपकी भक्ति से भी आपकी आज्ञा का पालन श्रेष्ठ है, क्योंकि आपकी आज्ञा का पालन मोक्ष के लिए होता है। आपकी आज्ञा की विराधना संसार के लिए होती है। साधु जीवन बिना प्रभु की संपूर्ण आज्ञाओं का पालन शक्य नहीं है। प्रभु की आज्ञा है- कर्म के आस्रव द्वारों को बंद करो और संवर और निर्जरा का आचरण करो।
उन्होंने कहा कि प्रभु की आज्ञाओं के प्रति हृदय में पूर्ण बहुमान भाव न हो तो उन आज्ञाओं का पालन भी आत्मा को लाभ करता है। जिस प्रकार सम्यगदर्शन के अभाव में चरित्र भी काय कष्ट रूप है। उसी प्रकार प्रभु की आज्ञाओं के प्रति हृदय में आदर बहुमान के बिना उन आज्ञाओं का पालन भी काय कष्ट रूप ही है।
पाश्र्व भवन में १ अगस्त को प्रात: 9 बजे पश्चात्ताप की भावयात्रा का आयोजन होगा।
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