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तकनीक ने सोचने-समझने की शक्ति घटाई, को-एजुकेशन के दुष्परिणाम सामने आ रहे

मुनि आत्मदर्शन विजय गणिवर्य की राजस्थान पत्रिका के साथ खास बातचीत

हुबलीAug 15, 2024 / 06:03 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

Rajasthan Patrika

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मुनि आत्मदर्शन विजय गणिवर्य का कहना है कि मौजूदा समय में तकनीक बढ़ी है। यह केवल व्यक्ति की शक्ति को कुंठित करने का काम कर रही है। कम्प्यूटर-कैलकुलेटर आने से बुद्धि की शक्ति कम हो गई है। व्यक्ति बुद्धि लगा ही नहीं रहा हैं। मुनि आत्मदर्शन विजय गणिवर्य की बचपन से पढ़ाई में अधिक दिलचस्पी थी। जब कक्षा 12 वीं में थे तभी से धार्मिक पाठशाला शुरू कर दी। पढऩे का शौक बचपन से रहा। ऐसे में बाद में धर्म की गतिविधियों में रूचि बढ़ती गई। मुम्बई के हस्साराम रिज्जुमल (एच.आर.) महाविद्यालय से अंग्रेजी माध्यम से स्नातक की पढ़ाई की। राजस्थान के पाली जिले के बेड़ा के रहने वाले हैं। करीब 26 वर्ष पहले श्री विजय रामचन्द्रसूरी संप्रदाय के श्री श्रेयांसप्रभसूरीश्वर महाराज के पास दीक्षा ली। पिछला चातुर्मास पालीताणा में था। श्री जगवल्लभ पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आराधक संघ श्रीपाश्र्व भवन जैन संघ विजयपुर (कर्नाटक) में चातुर्मास कर रहे मुनि आत्मदर्शन विजय गणिवर्य ने यहां राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में धर्म-ध्यान के साथ ही संस्कृति एवं संस्कारों पर खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल: मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर आप क्या कहना चाहेंगे?
मुनि: मौजूदा समय में शिक्षा के पीछे पागलपन सवार है। आज के मां-बाप की सोच यही है कि बच्चे को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाएं। इससे नौकरी के अवसर अधिक रहेंगे। यह गलत है। इससे बच्चे को अंग्रेजी शिक्षा तो दिला देंगे लेकिन विनय-विवेक नहीं दिला पाएंगे। आज की शिक्षा का लक्ष्य ही गलत है। संस्कारों का नाश हो रहा है। हमने जीवन को अच्छा बनाने का नहीं बल्कि संसार के सुख को ही लक्ष्य मान लिया है।
सवाल: क्या वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है?
मुनि: मौजूदा दौर में पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है। होना तो यह चाहिए कि हम शिक्षा में महापुरुषों की जीवनी के बारे में बताएं, उनका इतिहास बताएं। शिक्षा में यदि केवल भाषा एवं गणित का ज्ञान मिल जाएं तो भी बहुत है। अच्छी भाषा व्यवहार में झलकनी चाहिए और गणित की सामान्य समझ आ जाएं।
सवाल: मौजूदा दौर में दीक्षाएं अधिक हो रही हैं या घटी है?
मुनि: मौजूदा दौर में दीक्षाएं कम हो रही हैं। पाप ज्यादा होने लगे हैं। भोगवाद-जड़वाद बढ़ गया है। पहले आध्यात्मवाद अधिक था, जो अब लगभग खत्म हो चुका है। हमारा खान-पान, उठना-बैठना खराब हो गया है। सात्विक भोजन नहीं है। दायरे से अधिक भोग करने लगे हैं।
सवाल: को-एजुकेशन को आप कितना उचित-अनुचित मानते हैं?
मुनि: को-एजुकेशन सबसे अधिक गलत है। शिक्षा में बालक-बालिकाओं को एक साथ पढ़ाने के दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति का हम अनुसरण करने लगे हैं। हमारा पहनावा बदल गया है। संस्कारों पर इसका गहरा असर हो रहा है। शिक्षक भी पहले जैसे नहीं रहे। शिक्षा के साथ संस्कार जरूरी है।
सवाल: क्या आप मानते हैं कि आजकल स्वार्थवृत्ति बढ़ गई हैं, इस पर कैसे अंकुश लगा सकते हैं?
मुनि: वातावरण का असर हो रहा है। एक-दूसरे की देखादेखी अधिक करने लगे हैं। हम परिणाम की नहीं सोच रहे। ईष्र्या भावना बढ़ी है। हम बात ग्लोबल विलेज की करते हैं लेकिन स्वार्थवृत्ति बढ़ गई है। कोई किसी को सुखी देखना नहीं चाहता।
सवाल: संयुक्त या एकल परिवार में से आपके अनुसार कौनसा अधिक अच्छा हैं?
मुनि: आजकल एकल परिवार अधिक होने से एक ही व्यक्ति पर तनाव आ गया है। संयुक्त परिवार में मिल-जुलकर साथ रहने एवं काम करने की भावना होती है।
सवाल: धार्मिक आयोजनों से युवा वर्ग को कैसे जोड़ा जा सकता है?
मुनि: युवा वर्ग विशेष आयोजन से जुड़ सकते हैं। सेमीनार के माध्यम से युवा को धर्म से जोड़ सकते हैं। युवा को लॉजिक देकर समझा सकते हैं। जैन शासन में हर बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध की गई है।
सवाल: आजकल दिखावा अधिक होने लगा हैं, क्या इस पर रोक लगनी चाहिए?
मुनि: धर्म को लेकर हम चाहे जितना करें उसे आडम्बर नहीं कहा जा सकता है लेकिन यदि बाहरी कार्य के लिए करते हैं तो यह आडम्बर है।
सवाल: आज भी बड़े आयोजनों में भोजन का अपव्यय हो रहा हैं, इस पर कैसे अंकुश लग सकता है?
मुनि: हमें भोजन के अपव्यय पर ध्यान देना चाहिए। शादी में भोजन का अधिक अपव्यय हो जाता है। जबकि देश के लाखों लोगों को एक वक्त का खाना भी मुश्किल से नसीब हो पाता है।

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