मुनि: मौजूदा समय में शिक्षा के पीछे पागलपन सवार है। आज के मां-बाप की सोच यही है कि बच्चे को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाएं। इससे नौकरी के अवसर अधिक रहेंगे। यह गलत है। इससे बच्चे को अंग्रेजी शिक्षा तो दिला देंगे लेकिन विनय-विवेक नहीं दिला पाएंगे। आज की शिक्षा का लक्ष्य ही गलत है। संस्कारों का नाश हो रहा है। हमने जीवन को अच्छा बनाने का नहीं बल्कि संसार के सुख को ही लक्ष्य मान लिया है।
मुनि: मौजूदा दौर में पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है। होना तो यह चाहिए कि हम शिक्षा में महापुरुषों की जीवनी के बारे में बताएं, उनका इतिहास बताएं। शिक्षा में यदि केवल भाषा एवं गणित का ज्ञान मिल जाएं तो भी बहुत है। अच्छी भाषा व्यवहार में झलकनी चाहिए और गणित की सामान्य समझ आ जाएं।
मुनि: मौजूदा दौर में दीक्षाएं कम हो रही हैं। पाप ज्यादा होने लगे हैं। भोगवाद-जड़वाद बढ़ गया है। पहले आध्यात्मवाद अधिक था, जो अब लगभग खत्म हो चुका है। हमारा खान-पान, उठना-बैठना खराब हो गया है। सात्विक भोजन नहीं है। दायरे से अधिक भोग करने लगे हैं।
मुनि: को-एजुकेशन सबसे अधिक गलत है। शिक्षा में बालक-बालिकाओं को एक साथ पढ़ाने के दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति का हम अनुसरण करने लगे हैं। हमारा पहनावा बदल गया है। संस्कारों पर इसका गहरा असर हो रहा है। शिक्षक भी पहले जैसे नहीं रहे। शिक्षा के साथ संस्कार जरूरी है।
मुनि: वातावरण का असर हो रहा है। एक-दूसरे की देखादेखी अधिक करने लगे हैं। हम परिणाम की नहीं सोच रहे। ईष्र्या भावना बढ़ी है। हम बात ग्लोबल विलेज की करते हैं लेकिन स्वार्थवृत्ति बढ़ गई है। कोई किसी को सुखी देखना नहीं चाहता।
मुनि: आजकल एकल परिवार अधिक होने से एक ही व्यक्ति पर तनाव आ गया है। संयुक्त परिवार में मिल-जुलकर साथ रहने एवं काम करने की भावना होती है।
मुनि: युवा वर्ग विशेष आयोजन से जुड़ सकते हैं। सेमीनार के माध्यम से युवा को धर्म से जोड़ सकते हैं। युवा को लॉजिक देकर समझा सकते हैं। जैन शासन में हर बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध की गई है।
मुनि: धर्म को लेकर हम चाहे जितना करें उसे आडम्बर नहीं कहा जा सकता है लेकिन यदि बाहरी कार्य के लिए करते हैं तो यह आडम्बर है।
मुनि: हमें भोजन के अपव्यय पर ध्यान देना चाहिए। शादी में भोजन का अधिक अपव्यय हो जाता है। जबकि देश के लाखों लोगों को एक वक्त का खाना भी मुश्किल से नसीब हो पाता है।