हुबली

कत्ती के निधन से सीट खाली, जारी रहेगी विरासत या मिलेगा नया चेहरा

विधानसभा चुनाव दंगल 2023 : हुक्केरी विधानसभा क्षेत्रपिता के निधन के बाद 25 वर्ष की आयु में ही उमेश कत्ती ने संभाली थी क्षेत्र की राजनीति08 बार लगातार चुनाव जीत हासिल की उमेश कत्ती ने इस क्षेत्र से04 बार रहे मंत्री, 2004 में कांग्रेस से चुनाव लड़ा और हार गए16 बार चुनाव हुए हैं हक्केरी में, दो बार हुए उपचुनाव उमेश कत्ती के कारण05 बार जीत है कांग्रेस इस सीट से जबकि भाजपा 4, जनता पार्टी 2, जनता दल 2, एनसीओ, जेडीयू और जेडीएस 1-1 बार जीते

हुबलीMar 30, 2023 / 10:02 am

Zakir Pattankudi

कत्ती के निधन से सीट खाली, जारी रहेगी विरासत या मिलेगा नया चेहरा

बेलगावी. उत्तर कर्नाटक की सबसे बुलंद आवाज कहे जाने वाले उमेश कत्ती के असामयिक निधन से हुक्केरी विधानसभा क्षेत्र खाली नजर आ रहा है। अब उत्सुकता इस बात की है कि क्या कत्ती परिवार के प्रति वफादार मतदाताओं को आकर्षित कर कोई नया चेहरा जीतेगा या वंशवाद की विरासत जारी रहेगी। भाजपा के खेमे के अनुसार उमेश कत्ती के निधन से अनुकंपा के वोट हासिल कर जीतने की जरूरत नहीं है। यहां कत्ती परिवार के लिए पारम्परिक वोट हैं। परिवार में जो भी खड़ा होगा लोग उसका साथ देंगे।
हल्के में नहीं ले सकते

क्षेत्र के लोगों का कहना है कि पूर्व मंत्री शशिकांत नायिक, भाजपा चिक्कोडी जिला इकाई के अध्यक्ष डॉ. राजेश नेरली भी भाजपा के टिकट के प्रबल दावेदार हैं। इन दोनों पर आरएसएस की कृपा होने के कारण इन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
समर्थकों में है शून्य भाव

जनता पार्टी, जदयू, जदएस, कांग्रेस, भाजपा आदि सभी दलों से उमेश कत्ती जीते हैं। उनके पिता विश्वनाथ कत्ती का विधानसभा में ही दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया था। परिणामस्वरूप, 25 वर्ष की आयु में, उमेश कत्ती ने विधान सभा में प्रवेश किया। बाद में उमेश अपनी दबंगाई की वजह से राजनीतिक रूप से आगे बढ़े। अपने नेता के निधन से समर्थकों में एक शून्य भाव पैदा हो गया है।
क्या है एबी पाटिल की रणनीति?

एबी पाटिल तीन बार संकेश्वर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और दो बार मंत्री बने हैं। इस बार उन्होंने अपने वरिष्ठता अनुभव का उपयोग करने का फैसला किया है। उन्हें कांग्रेस का टिकट भी मिल चुका है। वर्ष 2008 में क्षेत्र पुनर्गठन के बाद, संकेश्वर निर्वाचन क्षेत्र टूटकर यमकनमरडी और हुक्केरी निर्वाचन क्षेत्रों में शामिल हुआ। उस वर्ष ए.बी. पाटिल मैदान में नहीं उतरे परन्तु 2013 और 2018 में, उन्होंने हुक्केरी से ही चुनाव लड़ा और उमेश कत्ती के खिलाफ हार गए। अब उस छवि का कोई नेता नहीं है। एबी पाटिल की ताकत इस बात में है कि वे किस तरह इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए करते हैं। पचमसाली समाज के एबी पाटिल 2ए आरक्षण संघर्ष में सबसे आगे हैं। उन्होंने बड़ा सम्मेलन कराकर वोट बटोरने की कोशिश की है। कांग्रेस में अब तक बगावत या अंदरूनी कलह के कोई संकेत नहीं हैं। इसके चलते एबी पाटिल और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ गया है।
व्यक्तिगत छवि का प्रभाव, किसी विचारधारा से नहीं चिपके

कत्ती के साथियों को याद है कि उमेश ने खुद कहा था कि हुक्केरी में केवल उमेशा कत्ती गुट और विरोधी गुट मात्र हैं। यहां किसी पार्टी की गिनती नहीं होती। उमेश कत्ती कहा करते थे कि उत्तर कर्नाटक अलग राज्य बनाएंगे, वे ही पहले मुख्यमंत्री बनेंगे। इन्होंने ही पूरे प्रदेश की राजनीति को टक्कर दी थी। किसी पार्टी या विचारधारा से न चिपके हुए, उन्होंने अपने व्यक्तिगत छवि के कारण लगातार आठ बार जीत हासिल की। वे चार बार मंत्री के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। वर्ष 2004 में उन्होंने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और 800 वोटों से हार गए। तब भाजपा से शशिकांत नायिक जीते थे।
सभी पार्टियों से लड़ा चुनाव

हुक्केरी विधानसभा के लिए 16 बार चुनाव हो हुए हैं। खास है कि उमेश कत्ती की वजह से दो उपचुनाव हुए हैं। कांग्रेस 5 बार, भाजपा 4 बार, जनता पार्टी 2 बार, जनता दल 2 बार, एनसीओ, जेडीयू, जेडीएस एक-एक बार जीते हैं। खास बात है कि इन सभी पार्टियों में उमेश कत्ती ने चुनाव लड़ा था।
बड़े बेटे निखिल को भाजपा से उम्मीद, भाई ने भी दावा ठोका
उम्मीद के मुताबिक उमेश कत्ती के बड़े बेटे निखिल मैदान में उतरे हैं। अपने पिता की विरासत को जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्पित है। उन्हें भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद है। उमेश की पत्नी सुशीला भी उनके बेटे को टिकट देने की जिद पर अड़ी हुई हैं। निखिल ने इंग्लैंड में अपनी एमबीए की डिग्री पूरी की है और वे अपने पिता के पाले में ही परवरीश पाई है। वे एक बार जिला पंचायत के सदस्य थे। वर्तमान में हीरा चीनी कारखाने के अध्यक्ष हैं, और यह गणना की जा रही है कि उन्हें इससे लाभ होगा।
दुविधा में मतदाता

रमेश कत्ती की मांग है कि उनके भाई के खाली हुए निर्वाचन क्षेत्र से उन्हें टिकट दिया जाए। अपने बड़े भाई की तरह, उन्होंने भी बीडीसीसी बैंक के अध्यक्ष और एक बार सांसद के रूप में राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है। इसके चलते फिलहाल मतदाताओं के लिए दुविधा बनी हुई है। इन भाइयों के प्रति वफादार एक बड़ी कार्यकर्ताओं की ताकत हुक्केरी विधानसभा क्षेत्र में है। जितने लोग निखिल के समर्थन में हैं, उतने ही लोग रमेश के भी समर्थन में हैं। दोनों के समर्थकों को ही उम्मीद है कि उनके नेता को ही टिकट मिलेगा।
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.