भारतीय संस्कृति का प्राणतत्त्व है विनय[typography_font:18pt;” >बेलगावी-घटप्रभामुनि जिनेशकुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति व जिनशासन का मूल विनय है।जैन संत मुनि जिनेशकुमार अपने सहवर्ती संत परमानंद के साथ घटप्रभा पधारे, जहां जैन समाज के लोगों के अलावा दूसरे धर्म के लोगों ने भी उनकी अगवानी कर स्वागत किया। इसके बाद आयोजित धर्मसभा में मुनि जिनेश्वर कुमार ने कहा कि विनय आभ्यन्तर तप व विटामिन सी की तरह है। विनय से व्यक्ति मन, वचन व काया को स्वस्थ रखता है। विनयी व्यक्ति संयमी व तप का विकास करता है, जहां विनय है वहां सद्गुणों का निवास होता है। विनयी व्यक्ति सब जगह आदर व सम्मान को प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि धर्म जीवन का प्राण तत्त्व है, धर्म जीवन का प्राण है। धर्म व्यवस्था नहीं बल्कि अनुभूति का साधन है। धर्म को उत्कृष्ट मंगलकारी बताया गया है। अहिंसा, संयम, तप, संवर, निर्जरा धर्म के भेद हैं। संयम से जीव विग्रह को प्राप्त होता है। निर्जरा से जीव कर्मों को तोड़ता है, निर्जरा का एक महत्वपूर्ण भेद विनय है। बड़ों का बहुमान करना विनय है। विनय का अवरोधक तत्त्व अहंकार है। अहंकार से विनय का नाश होता है। अहंकारी फुटबॉल की तरह ठोकरें खाता रहता है। जो व्यक्ति स्वयं को ही सबसे बड़ा बुद्धिमान समझता है और दूसरे लोगों को हीन मानता है, वह कभी भी प्रभु दर्शन व आत्मदर्शन नहीं कर सकता है। इस अवसर पर शांतिलाल घटप्रभा, रमेश संकलेचा, ख्यालीलाल बदामियां, आनंद चौरडिय़ा आदि ने विचार व्यक्त किए। जैन समाज के अलावा अन्य समाज के प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे। गौरतलब है कि मुनि जिनेशकुमार पालघर का चातुर्मास सम्पन्न कर आचार्य महाश्रमण के दर्शन के लिए गदग जाते समय घटप्रभा पधारे।