घोंसला बनाने की तैयारी में है
रामनगर जिले के रामदेवर बेट्टा पहाड़ी लंबी चोंच के गिध्दों का आवास स्थान है। इस पहाड़ी के आसपास 856 एकड़ क्षेत्र को सरकार ने 2012 में देश का प्रथम गिध्द संरक्षण अभयारण्य घोषित किया है। अब गजेंद्रगढ़ के आसपास की पहाडिय़ों पर भी गिध्द नजर आए हैं, जो इनका अध्ययन करने वालों में जिज्ञासा का कारण बना है। तीन दशक पूर्व गजेंद्रगढ़ के आसपास की पहाडिय़ों की शृंखला में गिध्द सामान्य थे परन्तु 1990 के बाद यह लुप्त हुए। अब फिर से पाए गए हैं और घोंसला बनाने की तैयारी में है।पर्यावरण संतुलन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं
खोजकर्ता मंजुनाथ नायक का कहना है कि गिध्द पर्यावरण संतुलन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। एक बार घोंसला बनाने की जगह सुरक्षित लगने पर हर वर्ष प्रजनन के लिए लौट आते हैं। लंबी चोंच के गिध्द नवंबर से मार्च तक प्रजनन में जुटते हैं। देश में गिध्दों की प्रजाति घट रही है, सफेद पीट के गिध्द, नीले लंबी चोंच के गिध्द तथा छोटी चोंच के गिध्द लुप्त होने की कगार पर हैं। गजेंद्रगढ़, नागेंद्रगढ़, कालकालेश्वर बेट्टा, शांतेश्वर बेट्टा पहाडिय़ां गिध्द समेत अन्य सामान्य चीलों के लिए भी प्राकृतिक आवास स्थल बन गए हैं। यहां भेडिया, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली आदि हैं। वन विभाग को इनके संरक्षण के लिए उचित कार्रवाई करनी चाहिए।लप्त होने की कगार पर
मृत प्राणियों का मांस खाना गिध्दों का आहार क्रम है। मवेशियों के लिए दर्द निवारक इंजक्शन के तौर पर डाईक्लोफेनाक दवाई दी जाती थी। इस इंजक्शन को लगवाने वाले मवेशियों के मरने के बाद इन्हें गिध्द खाया करते थे। डाईक्लोफेनाक से गिध्दों के गुर्दे समेत कई अंग खराब होकर बहुअंगों में विफलता के कारण मर रहे थे। इसके चलते इनकी नस्ल घट रही थी। इस दवाई पर प्रतिबंध लगाने के बाद अब फिर से गिध्द नजर आ रहे हैं।
रामनगर जिला रामदेवर बेट्टा के अलावा इस भाग में भी गिध्दों के वास के लिए पूरक मौसम है। गिध्दों की नस्ल को बचाकर संरक्षित करना जरूरी है।
–मंजुनाथ नायक, खोजकर्ता, जीव विविधता