ताजा मामला आंध्र प्रदेश के नेल्लोर से सामने आया है। नेल्लोर में फंसे बिहार के श्रामिकों को गांव भेजने के लिए पूरी तैयारिया कर दी गई। बुधवार को एक ट्रेन रवाना कर कर दी गई। उसके बाद बिहार के अन्य श्रमिको को गुरुवार को एक और विशेष ट्रेन से भेजने के लिए पुरे इंतजाम कर दिए गए। सभी श्रमिकों घर वापसी के लिए फोन कर तहसीलदार कार्यालय बुलाया गया। और फिर आखरी वक़्त में ट्रेन रद्द कर दी गई। जिस का कोई कारण नहीं बताया गया। फिर शुक्रवार को विशेष ट्रेन रवाना करने के लिए श्रमिकों को एक बार फिर बुलाया गया पर एक बार फिर से उन्हें निराश का सामना करना पड़ा। अधिकारियों ने इस पर भी चुप्पी साध ली।
श्रमिक विजेंद्र कुमार ने पत्रिका से बात करते हुए कहा की लॉक डाउन की वजह से वह नेल्लोर में फंस गए है। अपने घर वापिस जाना चाहते है, इसके लिए प्रशासन की ओर से उन्हें कहा गया की एक आवेदन पत्र भर कर देना है। उस के बाद उनकी कोरोना जाँच कर उनके घर भेजने के लिए व्यवस्था की जाएगी। पर तीन दिनों से वह सभी तहसीलदार कार्यालय के बहार बैठे है जहां उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है।
श्रमिक राजू का कहना है की उनके साथ महिलाएं और बच्चे भी साथ में है। उनके पास ना ही खाने को खाना है और ना ही पिने के लिए पानी है। अधिकारियों से उन्हें कोई भी जवाब नहीं मिल रहा है। घर भेजने के नाम पर 860 रूपए पैसे मांग रहे है। कोरोना की जाँच के नाम पर उनकी सिर्फ थर्मल स्कैनर से जाँच की गई है अन्य कोई परिक्षण नहीं किया गया है।