(हैदराबाद): भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना में शुक्रवार को दूसरी बार चुनाव हो रहे हैं। पहली बार सरकार बनाने का मौका केसीआर की अध्यक्षता वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस)को मिला था। मुख्यमंत्री केसीआर ने समय से पूर्व विधानसभा को भंग कर चुनावी खेल में नई बिसात बिछा दी। तेलंगाना में अब की बार ऊंट किस करवट बैठेगा? यह तो 11 दिसंबर को ही पता चल पाएगा। मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को विकास कार्यों और जनहित तथा कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा है, जबकि कांग्रेस के गठबंधन वाले ‘प्रजाकूटमी’ और भाजपा समेत समूचे विपक्ष को सत्ता विरोधी भावनाओं की आस है।
टीआरएस को एमआईएम का समर्थन
टीआरएस के तेलंगाना आंदोलन का जमकर विरोध करने वाली मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने आश्चर्यजनक रूप से टीआरएस प्रमुख केसीआर को मुख्यमंत्री पद पर बिन मांगे अपना समर्थन कर राजनीति की नई चाल चल दी। चुनाव में दोनों पक्षों ने अपनी मित्रता की घोषणा की। असद ओवैसी ने एमआईएम अध्यक्ष के नाते केसीआर को ही मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया।
प्रजाकूटमी से चुनौती, भाजपा एकला चलो की नीति पर
टीआरएस और मजलिस के गठबधंन के सामने कांग्रेस, टीडीपी, सीपीआई, तेलंगाना जन समिति, मुस्लिम लीग का ‘प्रजाकूटमी नामक महागठबंधन’ एक बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। तीसरा गठबंधन बहुजन समाज पार्टी लेफ्ट फ्रंट (बीएलएफ) के अंतर्गत बहुजन समाज पार्टी, सीपीएम तथा स्थानीय मजलिस बचाव तहरीक नामी ओवैसी विरोधी पार्टियों का गठबंधन भी चुनावी मैदान में टीआरएस को ललकार रहा है। चौथा कोण बनाते हुए तेलुगु राज्यों में अब तक अछूत माने जाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने ‘एकला चलो रे’ की राह पर अकेले ही पूरे राज्य में ताल ठोंकी है। गत चुनाव में भाजपा को मात्र 5 सीटें मिली थी। लेकिन इस बार भाजपा ने कुछ कर गुजरने की ठान ली है।
क्या काम आएगा केसीआर का दांव
यूं तो तेलंगाना विधानसभा के चुनाव अगले वर्ष अप्रैल-मई में संभवतः लोकसभा चुनाव के साथ होने थे, लेकिन तीन सितम्बर को मुख्यमंत्री ने राज्य विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर डाली। इतना ही नहीं, केसीआर ने तुरंत ही उम्मीदवारों की सूची भी जारी करके विपक्ष को सकते में ला दिया था। केसीआर के इस दांव से विपक्ष बैकफुट पर आ गया था। हालांकि, ये तो नतीजे ही बताएंगे कि केसीआर का दांव काम आएगा या नहीं?
भाजपा ने झोंकी ताकत, राहुल-नायडू-आजाद की तिकड़ी
तेलंगाना में असली मुकाबला टीआरएस और प्रजाकूटमी के बीच में रहने की संभावना जताई जा रही है। इसके बावजूद भाजपा ने चुनाव में ताकत झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा के पांच राज्यों के मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धमाकेदार दौरों ने भाजपा कार्यकर्ताओं—प्रत्याशियों में जान फूंक दी। हालांकि भाजपा की चुनावी नीति विधानसभा के लिए कम और लोकसभा के लिए ज्यादा नजर आती हैं, कांग्रेस और टीडीपी की जनसभाएं और चंद्रबाबू नायडू के साथ राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद आदि के साथ किए गए रोडशो ने प्रजाकूटमी गठबंधन को ताकत दी है। सोनिया गांधी ने भी वीडियो संदेश से तेलंगाना के वोटरों से अपील की कि वे प्रजाकूटमी को वोट दें, क्योंकि तेलंगाना को अलग राज्य बनाने में उनकी ही महती भूमिका रही हैं। सोनिया गांधी के अनुसार सत्ताधारियों ने तेलंगाना की जनता को धोखा दिया हैं।
त्रिकोणीय या सीधा मुकाबला
जाहिर तौर पर टीआरएस, प्रजाकूटमी और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय लगने वाला मुकाबला सीधे मुकाबले में बदलता नजर आ रहा है। नए बने विपक्षी प्रजाकूटमी गठबंधन ने सत्ताधारी टीआरएस पर भाजपा के सहयोगी दल होने का आरोप लगाया है। गठबंधन का कहना है कि भाजपा और टीआरएस अंदर से मिले हुए हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव में अगर “जन गठबंधन” (प्रजाकूटमी) सफल हो जाता है तो यही प्रयोग 2019 के लोकसभा चुनावों में “महागठबंधन” की शक्ल में विपक्षी एकजुटता के साथ केंद्र में भाजपा के लिए चुनौती बन कर उभर सकता है।
टीआरएस की कमजोरी
– मुख्यमंत्री केसीआर ने वादे पूरे नहीं किए।
– विकास योजनाओं का पूरा लाभ राज्य को नहीं मिला।
– मुख्यमंत्री ने अपने और अपने परिवार को लाभ पहुंचाया।
टीआरएस की ताकत
—गरीबों के लिए 1 लाख 28 हजार छोटे मकान बनाए।
—राज्य में बिजली संकट को दूर किया।
—’शी टीम’ बनाकर महिला सुरक्षा को सुनिश्चित किया।
—तेलंगाना राज्य में कानून व्यवस्था मजबूत रही।
करोड़ों के कर्जे में डूूबा तेलंगाना, पार्टियों के चांद-तारों के वादे
नवनिर्मित तेलंगाना राज्य पहले ही करीब २ लाख करोड़ रुपयों के कर्ज में डूबा हुआ है, लेकिन चाहे सत्ताधारी टीआरएस पार्टी हो या सत्ता की कुर्सी पर बैठने का सपना पालने वाला विरोधियों का गठबंधन, सबने वोटरों को लुभाने के लिए सरकारी खजाने की स्थिति जाने बिना धुआंधार वादे कर रखे हैं। यहां तक कि सत्ता के पायदान से दूर दिख रही भाजपा ने भी जनता को ऐसे-ऐसे लुभावने ख्वाब दिखाए हैं, जो व्यवहारिक नजर नहीं आते। सभी दलों के वादें पूरे करने में करोड़ों का बोझ आएगा यह बोझ जनता की जेब से ही पूरा होगा।
टीआरएस के वादे
– बेरोजगारों को प्रतिमाह 3,016 रूपए भत्ता।
– किसानों के 1 लाख तक ऋण माफी।
– रैतूबंधु योजना की आर्थिक सहायता 8 हजार से बढ़ा कर 10 हजार रूपए।
– कल्याण लक्ष्मी योजना के तहत लड़कियों के विवाह के लिए 1,00,116 रूपए देना।
– गरीबों को मकान निर्माण के लिए 5-6 लाख रूपए की मदद।
-सभी प्रकार के आसरा पेंशन की राशि 1 हजार से बढ़ा कर 2,016 रूपये करना,
दिव्यांगों की पेंशन राशि 1,500 से बढ़ा कर 3,016 रूपये करना
—कर्मचारियों के पीएफ कटौति की तिथि 2018 तक बढ़ाना।
-वृद्धावस्था पेंशन की योग्यता की आयु सीमा 65 वर्ष से घटा कर 57 वर्ष करना।
-भर्ती आयु सीमा को 3 साल और बढ़ाना।
-सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 58 वर्ष से बढ़ा कर 61 वर्ष करना।
-हैदराबाद महानगर को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर बनाने का प्रयास होगा।
भाजपा के वादे
– तेलंगाना में हर साल मुफ्त में एक लाख गाय बांटी जाएगी
– कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राओं को मुफ्त में लैपटॉप ।
– पहली से दसवीं तक की छात्राओं को मुफ्त में साइकिल ।
– किसानों का 2 लाख रुपये तक का कर्ज माफ करना।
– साल 2022 तक सभी गरीबों को मुफ्त में मकान ।
– बेरोजगारों को हर महीने 3,116 रुपये का बेरोजगारी भत्ता देना।
– गरीब परिवार की लड़की की शादी के समय 1 लाख रुपये और 1 तोला सोना ।
– महिला स्वयं सहायता समूहों को मुफ्त में स्मार्ट फ़ोन और 5 लाख तक का बिना सूद कर्जा देना।
– वृद्धावस्था में कैलाश मानसरोवर, काशी और पुरी की सब्सिडाइज यात्रा ।
-धर्म परिवर्तन के खिलाफ तेलंगाना में कानून बनाने का वादा।
-कॉलेज जाने वाली छात्राओं को आधे दाम पर स्कूटी देना।
कांग्रेस के वादे
– हर तरह के रोगों के मरीजों का 5 लाख रूपए तक का मुफ्त इलाज करना।
– किसानों को एक साथ दो लाख रुपए की कर्जमाफी।
– सभी मंदिरों, मस्जिदों, चर्च सहित सभी धार्मिक स्थानों पर मुफ्त बिजली ।
– बेरोजगार युवाओं को हर महीने 3 हजार रुपए का बेरोजगारी भत्ता ।
– गरीब लड़कियों की शादी के लिए 1,50,116 रूपये की वित्तीय सहायता देना।
– सभी महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को 1 लाख रूपये का अनुदान तथा हर एसएचजी को 10 लाख रूपये का बैंक लोन ,जिसका ब्याज सरकार भरेगी।
– सभी बेघर लोगों को घर बनाने के लिए 5 लाख रूपये देना।
-सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्त उम्र 58 से बढ़ाकर 60 वर्ष करने का वादा।
-पेट्रोल-डीजल और मेट्रो टिकट की दरों में कटौती का दावा है।