प्रतिवर्ष की तरह हैदराबाद में बकरीद के मौके पर क़ुर्बानी के लिए जानवरों की मंडी सजाई गई थी जो ईद की सुबह तक आबाद दिखाई दी लोग सुबह भी बकरों को खरीदने के लिन मंडी में आते दिखाई दिए। तंदरुस्ती और नस्ल के आधार पर, व्यापारियों ने फ़लकनुमा, चांद्रायनगुट्टा, बाबानगर, बारकस, फिसलबंडा, मलकपेट, चंचलगुडा, इंजन बाउली, कालापत्थर, बहादुरपुरा, किशन बाग़, आसिफ़ नगर, महदीपटनम, टोलीचौकी, गोलकोंडा और अन्य क्षेत्रों में सड़क के किनारे पर अस्थायी स्टाल की स्थापना की।
कुछ मवेशी व्यापारियों का अंदाज़ा है कि परिवहन लागत में वृद्धि व राज्यों में आई बाढ़ और भारी बारिश इन बढ़ती कीमतों का एक कारण हैं। राज्यों के कई इलाक़ों में भारी बारिश के कारण भेड़ व बकरे भीग गए उन्हें सूखा रखने तथा बीमारियों से बचाने के लिए व्यापारियों ने अपनी दुकानों में हैलोजन बल्ब लगाएं हुए हैं।
एहसान अली नामक एक व्यापारी ने पत्रिका को बताया कि 16 वर्षों से वह इस मौसमी व्यवसाय को कर रहा है और इस साल स्थानीय बाजारों में माल की कमी के अलावा, लगातार बारिश की वजह से जिलों और अन्य राज्यों में परिवहन प्रभावित हुआ है, जिस कारण भेड़ की कीमत इन ऊंचाइयों पर रही। उन्होंने कहा कि हर साल जानवर जलपल्ली और जियागुड़ा के खेतों से आते हैं, परन्तु इस साल ज़्यादा मांग के कारण बकरों को भोंगीर, नलगोंडा, महबूबनगर, गढ़वाल, संगारेड्डी, ज़हीराबाद, विक़ाराबाद, कर्नूल आदि इलाक़ों तथा कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश राज्यों से ख़रीदे गएं।
एक व्यापारी बिलाल ने कहा कि तेलंगाना पोटला, दुम्बा, कङ्गा, नसी, खस्सी, मेंडा, लम्बे कानों वाला जमुनापुरी आदि भेड़ों के प्रकार हैंं। इनमे खस्सी सबसे महंगी नस्ल है, जो 50,000 रुपये प्रति जोड़ी से शुरू होती है और तंदुरुस्ती के आधार पर उसकी कीमत 1 लाख रुपये तक पहुंची। यह आम तौर पर उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में पाले जाते हैं।
चादरघाट से आए सैफुल नामक एक ग्राहक ने भी बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बकरों की क़ीमतें बढ़ गयी हैं। उन्होंने पत्रिका को बताया कि इस साल प्रत्येक जोड़ी के लिए 4,000 रुपये से 5,000 रुपये की वृद्धि हुई है।