scriptकोरोना से जंग जीत ली पर इनकी सामाजिक तिरस्कार से जंग जारी है | Won the battle with Corona, but war continues with their social didain | Patrika News

कोरोना से जंग जीत ली पर इनकी सामाजिक तिरस्कार से जंग जारी है

locationहैदराबाद तेलंगानाPublished: May 20, 2020 06:59:38 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

( Telangana News ) कोरोना ( Corona ) से मुश्किलों से बच निकले लोगों को नई तरह की दुश्वारियों का (Social problems faces ) सामना करना पड़ रहा है। जैसे-तैसे कोरोना से निजात मिली तो सामाजिक तिरस्कार (Social disdain) गले आ पड़ा। बेशक केंद्र सरकार के मैसेज, कोरोना से दूर रहें, ठीक हो चुके मरीज से नहीं। इसके बावजदू ऐसे लोगों को अछूत मान कर उनसे दूरी बढ़ाए जाने के मामले सामने आएं हैं।

कोरोना से जंग जीत ली पर इनकी सामाजिक तिरस्कार से जंग जारी है

कोरोना से जंग जीत ली पर इनकी सामाजिक तिरस्कार से जंग जारी है

हैदराबाद(तेलंगाना)मोइनुद्दीन खालिद: ( Telangana News ) कोरोना ( Corona ) की गिरफ्त में आकर मुश्किलों से बच निकले लोगों को नई तरह की दुश्वारियों का (Social problems faces ) सामना करना पड़ रहा है। जैसे-तैसे कोरोना से निजात मिली तो सामाजिक तिरस्कार (Social disdain) गले आ पड़ा। कोरोना संक्रमित या मृत लोगों के परिजनों को इस नई तरह के सामाजिक अभिशाप का शिकार होना पड़ रहा है। बेशक केंद्र सरकार के मोबाइल पर आने वाले मैसेज कोरोना से दूर रहें ठीक हो चुके मरीज से नहीं, इसके बावजदू ऐसे लोगों को अछूत मान कर उनसे दूरी बढ़ाए जाने के कई मामले हैदराबाद में सामने आएं हैं।

हैदराबाद है हॉटस्पाट
हैदराबाद आज भी तेलंगाना का हॉटस्पॉट बना हुआ है। कुछ परिवारों ने कोरोना की जंग तो जीत ली लेकिन स्वस्थ्य होने के बाद आज भी उन्हें तिरस्कार और दुराभाव से जूझना पड़ रहा है। मलकपेट में एक कन्टेनमेंट जोन विजयवाड़ा हाईवे से लगा हुआ था, जो हाल में क्वारंटाइन के बाद हटा दिया गया। उसमें सब्जी का ठेला लगाने वाले ने पत्रिका को बताया कि उनकी पडोसी बिल्डिंग में एक व्यक्ति की संदेहास्पद मृत्यु के बाद पूरे क्षेत्र को क्वारंटाइन कर दिया गया था। 14 दिनों के दौरान हम एक तरह की नजरबंदी की जिंदगी गुजारने को मजबूर थे। बीमार व्यक्ति की दवा से लेकर अनाज पानी तक सबके लिए पुलिस के रहम करम पर थे। जल्द ही हमारे पैसे ख़त्म हो गए।

लोग मिलने से कर रहे परहेज
निगरानी कर रहे पुलिस के पास एक डायरी होती थी, जिसमें तमाम आवश्यक फ़ोन नंबर दर्ज थे। लेकिन हम उन नम्बरों का क्या करते। आखिर एक जानने वाले परिवार का फ़ोन आया तो उन्होंने हमारी परेशानी को भांप लिया। तुरंत ही उन्होंने दवा, चावल तथा तमाम जरूरी सामान हमारे घर पहुँचाने की व्यवस्था की। लेकिन अब भी लॉक डाउन जारी है और गली के लोग हमसे मिलने-जुलने में परहेज करते हैं।

कोरोना की स्टॉम्प बनी मुसीबत
सिकंदराबाद का एक परिवार क्वारंटाइन हो गया था। आशा वर्करों ने उनके हाथों में स्टाम्प लगा दिया था। घर से बाहर नहीं निकल सकते थे। 13 साल की बेटी को किराना लाने बाहर भेजा तो देखने वाले सवाल करते कि ये क्यों बाहर आ रही है। सरकार का दिया थोड़ा सा राशन कितने दिन चलता? बेगम कहती हैं कि कोरोना से लडऩा आसान था लेकिन ऐसी जिंदगी जीना भारी पड़ रहा है।

भलाई करना महंगा पड़ा
एक ड्राइवर ने एक गर्भवती महिला को इमरजेंसी में मदद की थी। एहतियात के तौर पर इसे भी होम क्वारंटाइन कर दिया गया। इन 10 दिनों के दौरान उसकी पत्नी को 3 किलोमीटर तक पैदल चल कर किराना लाना पड़ता रहा। अनजाने में यह ड्राइवर ख़ुद को मुसीबत में फंसा हुआ महसूस करता है। कमाई का साधन नहीं और कोई सरकारी सहायता नहीं। ऊपर लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं। वह पूछ रहा है क्या होम क्वारंटाइन का यही मतलब है?

अछूतों जैसा बर्ताव
वेंकट कोरोना बीमारी से सेहतमंद होकर घर आया। महानगर के गाँधी अस्पताल से डिस्चार्ज हुए एक महीना हो चुका है। लेकिन पडोसी ऐसे बर्ताव करते करते हैं, मानो हम उनके दुश्मन हों या जैसे हमने ही कोरोना वायरस को जन्म दिया हो। वेंकट को सूयार्पेट मार्केट में अप्रैल में कोरोना हुआ था। उसके घर आने के बाद पूरा परिवार भी 28 दिनों के होम क्वारंटाइन की पालना कर रहा है। लेकिन पड़ोसियों की नजर में पूरा परिवार ही जैसे मुजरिम बना हुआ है। कोई उनसे बात तक नहीं करता। उसकी पत्नी कहती हैं कि अब उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इस माहौल का बुरा प्रभाव पडऩे लगा है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो