बस्तर दशहरा में 20 फीट ऊंचा और 45 फीट लंबा दो मंजिला रथ तैयार करने में 15 से 20 दिन का वक्त लगता है। इस समय 80 से 90 ग्रामीण रथ का निर्माण कर रहे हैं, जिनकी शासन से अपेक्षा है कि उन्हें सम्मानजनक मानदेय दिया जाए। ताकि आने वाली पीढ़ी में रथ निर्माण को लेकर उत्साह बना रहे। फिलहाल दो गांवों को 21-21 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
बेड़ाउमरगांव के मोतीराम ने कहा, हमारी पीढ़ियां रथ निर्माण करती आ रही हैं। हमारे बगैर रथ निर्माण कार्य पूर्ण नहीं होता है। जिसमें कई दिनों की मेहनत लगती है। पर हमें किसी भी तरह का मेहनताना नहीं दिया जाता है। रथ परिक्रमा के दौरान भी यदि रथ का चक्का निकल जाता है, तो उसे लगाने का काम हम ही करते हैं।
झारउमरगांव के पीलू ने कहा, बस्तर दशहरा बगैर रथ के निर्माण बिना पूर्ण नहीं हो सकती है। झारउमरगांव और बेड़ा उमरगांव के ग्रामीण रथ निर्माण का कार्य करते आ रहे हैं। जिनकी समस्याओं और को लेकर शासन-प्रशासन की ओर से कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है।
झारउमरगांव के बलदेव बघेल ने कहा, दशहरा के समय हम रथ का निर्माण करते हैं, बाकी समय खेती-किसानी। सभी आर्थिक तौर पर कमजोर हैं। यदि शासन की ओर से मेहनताना दिया जाता है, तो हमें खुशी होगी। दशहरा में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, पर हमें किसी तरह का मानदेय नहीं दिया जाता है।
तहसीलदार जगदलपुर पुष्पराज पात्र ने कहा, कारीगरों के गांवों को निर्धारित प्रोत्साहन राशि 21-21 हजार रुपए दी जाती है। मानदेय की मांग वे कर रहे हैं जिसे शासन स्तर पर पूरा किया जाना ही संभव है।