कांकेर

मासूम बच्चों के साथ हो रहा खिलवाड़, छात्रावासों में दी जा रही एक्सपायरी दवाइयां

बालक छात्रावास में अधीक्षक द्वारा मासूम बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ किया जा रहा है।

कांकेरSep 09, 2018 / 04:40 pm

Deepak Sahu

मासूम बच्चों के साथ हो रहा खिलवाड़, छात्रावासों में दी जा रही एक्सपायरी दवाइयां

गोण्डाहूर. सरकार द्वारा प्रदेश के विभिन्न छात्रावासों में आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा स्वस्थ्य और आवास उपलब्ध कराने की योजनाएं चलाई जा रही है। परन्तु कोयलीबेड़ा ब्लॉक के अंदरूनी क्षेत्र में स्थित बालक छात्रावास में अधीक्षक द्वारा मासूम बच्चों की जिंदगियों से खिलवाड़ किया जा रहा है। मामला कांकेर जिले के ग्राम पंचायत माचपल्ली के आदिम जाति बालक छात्रावास का है।

परलकोट क्षेत्र के घोर नक्सल प्रभावित गांवों के सैकड़ों बच्चे बेहतर शिक्षा और स्वस्थ्य की आस में छात्रावास में रहकर अपना जीवन सवारने के उम्मीद के साथ आते हैं। सरकार द्वारा इन छात्रावासों के छात्रों के शिक्षा स्वस्थ्य और अन्य सुविधाओं पर भरपूर खर्च किया जाता है। परन्तु जमीनी स्तर पर अधिकारियों की लापरवाही और नियमित निरीक्षण के अभाव में अधीक्षकों द्वारा सरकार के इस योजना की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती है। छात्रावास अधीक्षक बगैर किसी सूचना के छात्रावास से नदारत मिले और छात्रावास की पूरी जिम्मेदारी एक झाड़ू लगाने वाले पर मिली, छात्र टूटे-फूटे और फटे गद्दे वाले बिस्तर पर सोने को मजबूर हैं।

जबकि अधीक्षक ने स्वयं के लिए बेहद आराम दायक बिस्तर की व्यवस्था किए हुए हैं। छात्रों के लिए बनने वाले चावल में कीड़े रेंगते मिले, वहीं सब्जियां पूरी तरह से सड़ चुकी थी, जिसमें कीड़े बिलबिला रहे थे। अधीक्षक छात्रों के स्वस्थ से खिलवाड़ करने में भी पीछे नहीं रहे। छात्रों को दी जाने वाली दवाइयों में से एक्सपायरी हो चुके थे। छात्रावास के सूचनापटल में छात्रों को प्रशासनिक और क्षेत्र- जिला संबंधी जो जानकारियां दी जा रही थी।

टूटे-फूटे बिस्तरों, गंदगियों और दूषित भोजन के बीच रहने को मजबूर इन मासूम जिंदगियों की ओर यदि प्रशासन जल्द ही ध्यान न दे तो यह छात्रावास कही मासूम जिंदगियों की कक्रगाह न बन जाए। अंचल के छात्रावासों में इस तरह की बार-बार लापरवाह सामने आ रही है। कभी मच्छरदानी नहीं तो कभी दवा नहीं होने की शिकायत के बाद भी आदिम कल्याण विभाग की ओर से कार्रवाई नहीं हो रही है। अधिकांश छात्रावासों ेमें तो बच्चों को शुद्ध भोजन नहीं मिल पा रहा है।

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