दुर्ग

महामारी के दौर में एक तरफ बीमार मां तो दूसरी ओर कोविड ड्यूटी, लाखों की जिंदगी बचाने डॉक्टर बेटे ने चुनी कत्र्तव्य की राह

बीमार मां आईसीयू में भर्ती थी पर कोविड ड्यूटी के चलते जिला अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर श्रीशांत दुबे उनसे मिल नहीं पाए। वे तीन माह से कोविड क्लीनिक में सेवाएं दे रहे हैं। (Covid-19 Medical Staff)

दुर्गJun 03, 2020 / 06:18 pm

Dakshi Sahu

महामारी के दौर में एक तरफ बीमार मां तो दूसरी ओर कोविड ड्यूटी, लाखों की जिंदगी बचाने डॉक्टर बेटे ने चुनी कत्र्तव्य की राह

दुर्ग. कहा जाता है संतान बुढ़ापे का सहारा होता है, लेकिन कई बार कत्र्तव्य के आड़े आने से खून के रिश्ते को नजरअ ंदाज कर दूसरों की सेवा करना प्राथमिकता बन जाती है। जिला अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर डॉ. श्रीशांत दुबे के साथ वर्तमान में ऐसी ही परिस्थितियां निर्मित है। इसके बाद भी वह जिला अस्पताल के फीवर क्लीनिक में अपनी सेवाएं दे रहे हंै। लगातार शुगर लेवल हाई रहने की वजह से उनकी मां की किडनी में इंनफेक्शन हो चुका है। रामकृष्ण केयर अस्पताल में 15 दिनों तक आईसीयू में भर्ती रही। चार दिन पहले वह घर लौटी है, लेकिन फीवर क्लीनिक में ड्यूटी करने की वजह से डॉक्टर बेटा मां के नजदीक भी नहीं बैठ पा रहा है।
तीन माह से कर रहे कोविड ड्यूटी
मेडिकल ऑफिसर श्रीशांत दुबे का कहना है कि वह 3 माह से कोविड ड्यूटी कर रहे हैं। क्वारंटाइन सेंटर और डोर टू डोर सैंपलिंग लेने के बाद वह फीवर क्लीनिक में मरीजों की समस्याओं को सुन रहे हैं। इस दौरान संभावितों पर विशेष नजर रख रहे हैं। उनका कहना है कि फीवर क्लीनिक में कई तरह के मरीज आते है। पहली बार में देखकर तय नहीं किया जा सकता वह व्यक्ति कोरोना संक्रिमित है कि नहीं? हर दिन क्लीनिक की परिस्थितियां बदलती रही है।
कब वे खुद कोरोना की चपेट में आ जाए इसका अंदाजा नहीं। ऐसी स्थिति में बीमार या फिर स्वस्थ्य व्यक्ति के सीधे संपर्क में आना खतरे से खाली नहीं। यही वजह है कि इकलौती संतान होने के बाद भी वे अपनी मां-बाप से दूरी बनाकर रखे हुए हैं। बातचीत करने के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि फिजिकिल डिस्टेंस है कि नहीं। पिता भी बीमार रहते है। दिन में 11 प्रकार की अलग-अलग दवाईयां खाना होता हैं। वाट्सऐप में मैसेज कर बताते हैं खाने के लिए।
दिमाग से भ्रम निकालना जरूरी है
डॉ. श्रीशांत बताते है कि फीवर क्लीनिक में हर दिन 25 प्रतिशत यानी 25 से 30 मरीज ऐसे होते है जिन्हे शंकाएं घेरे रहती है। दरअसल उन्हें कुछ नहीं हुआ रहता है, मौसमी सर्दी जुकाम और बुखार आने पर वे बिना जांच इस नतीजे पर पहुंच जाते है कि उन्हें कोरोना को चुका है। तब उन्हें समझाना बेहद कठिन होता। ऐसे व्यक्तियों की काउंसलिंग करने में सबसे ज्यादा समय लगता है। पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वे ऐेसे लोगों को क्लीनिक से बाहर भेज घर पर रहकर आराम करने की सलाह देते हैं। डॉक्टर का कहना है कि जब तक दिमाग से भ्रम नहीं निकलेगा वह स्वयं को बीमार महसूस करेगा।
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