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SPECIAL REPORT : इन वजहों से उत्तराखंड को झेलनी पड़ रही सबसे ज्यादा आपदा

locationजयपुरPublished: Feb 11, 2021 08:27:31 pm

Submitted by:

Ramesh Singh

चाहे 2013 में केदारनाथ आपदा हो या हाल ही चमोली में ग्लेशियर (CHAMOLI GLACIER BURST) टूटने की घटना। जिसमें दो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गए। हालांकि अभी स्पष्ट कारणों का पता नहीं चल पाया है। रिपोर्ट आने में समय लग सकता है। लेकिन पहाड़ों को काटकर बन रहीं सड़कें, हाइवे, पावर प्रोजेक्ट व कृत्रिम टूरिस्ट प्लेस बनाना बड़ी वजह है।

SPECIAL REPORT

देहरादून. हिमालयी क्षेत्र में उत्तराखंड को क्यों प्रकृति या पहाड़ों का सबसे ज्यादा प्रकोप झेलना पड़ रहा है? पल भर में देखते-देखते सब कुछ खत्म हो जाता है।

हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट
नदियों का गलाघोंट कर बिजली उत्पादन के लिए पहाड़ों को काटकर (जल विद्युत परियोजनाएं) हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। पिछले 20 सालों में यह सरकारों के लिए कमाई का बड़ा जरिया हैं।
कमाई का लालच
– 5वें नंबर पर भारत। कनाडा, अमरीका, ब्राजील व चीन आगे
– 197 हाइड्रोपावर प्लांट हैं भारत में, सिर्फ 98 उत्तराखंड में
– 12 फीसदी (45,798 मेगावॉट) बिजली उत्पादन होता है
– 41 निर्माणाधीन उत्तराखंड में, 197 हाइड्रो प्रोजेक्ट प्रस्तावित
– 336 हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को 2013 में अनुमति दी गई
चारधाम प्रोजेक्ट
केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री को जोडऩे वाले चार धाम प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ों को काटकर हाइवे, टनल, पुल बनाए जा रहे हैं। हिमालय क्षेत्र के पहाड़ उतने मजबूत नहीं हैं।

विकास के आंकड़े
– 889 किलोमीटर लंबे टू लेन हाइवे का निर्माण हो रहा
– 15 फ्लाईओवर, 101 पुल, 2 टनल 12 बायपास रोड
– 56 हजार पेड़ काटे, 1702 एकड़ जंगल जमीन प्रयोग में
टूरिज्म के लिए रोप वे
इकोलॉजिकल दुष्प्रभाव का अध्ययन किए बिना हिल टॉप पर व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए रोप वे बनाए जा रहे हैं। होटल, फूड कोर्ट, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स व पार्किंग भी बनेंगे। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार रोपवे से ड्रेनेज में बदलाव, मिट्टी का क्षरण व प्रदूषण बढ़ेगा।

कमाई का रोप वे
– 65 रोप वे थे भारत में वर्ष 2018 से पहले
– 2018 में पीपीपी मोड पर रोप वे प्रोजेक्ट की छूट
– 21 नए रोप वे प्रोजेक्ट्स के प्रस्ताव पर काम शुरू
– 11 उत्तराखंड व 10 प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश के हैं
इसलिए तबाही ज्यादा
पेड़ की जड़ व तने पहाड़ के भीतरी हिस्से में मिट्टी को मजबूती से बांधे रखते हैं। जैसे जैसे कट रहे हैं वैसे वैसे पहाड़ कमजोर होते जा रहे हैं। भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। हिमालय से निकलने वाली नदियों में पानी के साथ पत्थर के टुकड़े भी बहाव में आते हैं। यही बांध में गाद के रूप में भर जाता है। इसके बाद जब बांध टूटते हैं तो पानी के साथ बड़ी मात्रा में मलबा व पत्थर आदि भी आता है। यही तबाही की बड़ी वजह बनता है।

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