पत्रिका से खास बातचीत में सजल ने बताया, मैंने पटियाला की थापर यूनिवर्सिटी में अक्टूबर में हुए टेड एक्स प्रोग्राम में भाग लिया था। एक महीने के रिव्यू के बाद मेरे वीडियो को एक हफ्ते पहले यू-ट्यूब पर रिलीज किया गया। इसे एक हफ्ते में ३ लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है। मैंने इसमें अपनी जिंदगी की तीन स्टोरीज और पांच सक्सेस फॉर्मूला शेयर की थीं। वे बताते हैं, मैंने एंट्री भेजी और उसके बाद टेलीफोनिक इंटरव्यू के बाद एक मेल से अपनी लाइफ स्टोरी का एक ओवरव्यू भेजा और मैं सलेक्ट हो गया। लगभग २० सालों से इंदौर में रह रहे सजल आईटी कंसल्टेंट है। उन्होंने अचीविंग द अनइमेजिनेबल सब्जेक्ट के साथ लोगों को एड्रेस किया था। उनके साथ पूजा बेदी, ऑथर रवींद्र सिंह जैसे फैमस लोग शामिल हुए थे।
उन्होंने इस टॉक में अपनी जिंदगी की तीन कहानियां सुनाईं जो काफी पसंद की जा रही हैं। जैन ने बताया, किस तरह वे सामान्य स्टूडेंट से गोल्ड मेडलिस्ट बने। पांच सूत्री सक्सेस फॉर्मूला
1. फ्रेम योर ड्रीम- सबसे पहले अपने ड्रीम्स को शेप दीजिए। इनके बारे में पता कीजिए कि आप क्या पाना चाहते हैं।
2. सेंड ऑफ नेगेटिव पीपल- जब आप सपने तय कर लेते हैं तो लोग कहना शुरू कर देते हैं बेकार मेहनत कर रहे हो। लगता नहीं है सक्ससे मिलेगी? नेगेटिव लोगों को नो कहना सीखें और उनसे दूरी बना लें।
3. ग्रो योर थिंकिंग- अपनी सोच का दायरा बढ़ाएं। सोचें, क्या हो सकता है? आगे कैसे बढ़ा जा सकता है? रिसर्च व हार्ड वर्क करें। जिस फील्ड में काम कर रहे हैं उसक ा पूरा नॉलेज रखें।
4. डोंट सॉल्व द प्रॉब्लम मेक देम इर-रेलेवेंट- किसी भी समस्या के आने पर कोशिश करे कि उसकी रेलेवेंसी को ही खत्म कर दें, यानी एक ऐसा उपाय जो प्रॉब्लम होने पर न लगे कि प्रॉब्लम है।
6. एक्शन इज मस्ट- कुछ भी अचीव करने के लिए एक्शन प्लान जरूरी है। इसके बिना कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। स्ट्रैटजी को प्लानिंग के साथ एग्जीक्यूट करें।
1. फ्रेम योर ड्रीम- सबसे पहले अपने ड्रीम्स को शेप दीजिए। इनके बारे में पता कीजिए कि आप क्या पाना चाहते हैं।
2. सेंड ऑफ नेगेटिव पीपल- जब आप सपने तय कर लेते हैं तो लोग कहना शुरू कर देते हैं बेकार मेहनत कर रहे हो। लगता नहीं है सक्ससे मिलेगी? नेगेटिव लोगों को नो कहना सीखें और उनसे दूरी बना लें।
3. ग्रो योर थिंकिंग- अपनी सोच का दायरा बढ़ाएं। सोचें, क्या हो सकता है? आगे कैसे बढ़ा जा सकता है? रिसर्च व हार्ड वर्क करें। जिस फील्ड में काम कर रहे हैं उसक ा पूरा नॉलेज रखें।
4. डोंट सॉल्व द प्रॉब्लम मेक देम इर-रेलेवेंट- किसी भी समस्या के आने पर कोशिश करे कि उसकी रेलेवेंसी को ही खत्म कर दें, यानी एक ऐसा उपाय जो प्रॉब्लम होने पर न लगे कि प्रॉब्लम है।
6. एक्शन इज मस्ट- कुछ भी अचीव करने के लिए एक्शन प्लान जरूरी है। इसके बिना कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। स्ट्रैटजी को प्लानिंग के साथ एग्जीक्यूट करें।
पहली कहानी
मेरा सपना गोल्ड मेडलिस्ट बनना था, लेकिन सक्सेस नहीं मिलती थी। सबने एडवाइज दी- हार्ड वर्क करो, रिफरेंस बुक पढ़ो। इससे माक्र्स में इंप्रूवमेंट हुआ, लेकिन टॉप नहीं कर पाया। उसके बाद सोचा, क्यों न ऐसा मेंटर चुना जाए जो इस गोल को अचीव कर चुका है। फिर वही किया। अपना रूम शिफ्ट कर मेंटर के साथ रहने लगा। कॉलेज भी उन्हीं के साथ जाता था। उसके बाद उनकी टेक्निक सीखी और टॉपर बना।
मेरा सपना गोल्ड मेडलिस्ट बनना था, लेकिन सक्सेस नहीं मिलती थी। सबने एडवाइज दी- हार्ड वर्क करो, रिफरेंस बुक पढ़ो। इससे माक्र्स में इंप्रूवमेंट हुआ, लेकिन टॉप नहीं कर पाया। उसके बाद सोचा, क्यों न ऐसा मेंटर चुना जाए जो इस गोल को अचीव कर चुका है। फिर वही किया। अपना रूम शिफ्ट कर मेंटर के साथ रहने लगा। कॉलेज भी उन्हीं के साथ जाता था। उसके बाद उनकी टेक्निक सीखी और टॉपर बना।
दूसरी कहानी
उज्जैन सिंहस्थ के वक्त महाकाल दर्शन के लिए १ करोड़ लोगों के शामिल होने की संभावना थी, लेकिन ३ से ४ करोड़ लोग शामिल हो गए थे। कैपिसिटी २० से २५ लाख की थी। बड़ी परेशानी थी कि भीड़ को हैंडल कैसे किया जाए। हमने कलेक्टर को सॉल्यूशन दिया कि थ्रीडी हैंडसेट प्रोवाइड किए जाएं, जिससे लोग आसानी से दर्शन कर सकेंगे। यानी प्रॉब्लम ही इर-रेलेवेंट हो गई थी।
उज्जैन सिंहस्थ के वक्त महाकाल दर्शन के लिए १ करोड़ लोगों के शामिल होने की संभावना थी, लेकिन ३ से ४ करोड़ लोग शामिल हो गए थे। कैपिसिटी २० से २५ लाख की थी। बड़ी परेशानी थी कि भीड़ को हैंडल कैसे किया जाए। हमने कलेक्टर को सॉल्यूशन दिया कि थ्रीडी हैंडसेट प्रोवाइड किए जाएं, जिससे लोग आसानी से दर्शन कर सकेंगे। यानी प्रॉब्लम ही इर-रेलेवेंट हो गई थी।
तीसरी कहानी
गोल्ड मेडलिस्ट बनने के लिए मैंने खुद को संकल्पबद्ध किया। एक ऐसी मैडम को मेंटर चुना, जिन्होंने १४ साल की उम्र में १२वीं क्लास पास की और २५ साल की उम्र में पीएचडी। ऐसा इसलिए, ताकि मैं खुद को इंस्पायर्ड कर सकंू। आखिर मैंने उस मैडम से ही शादी भी कर ली। ये तीसरी कहानी लोगों को बहुत पसंद आई। मैंने इस कहानी पर तालियों की गडग़डाहट सुनी थी, तब बहुत खुशी महसूस हुई।
गोल्ड मेडलिस्ट बनने के लिए मैंने खुद को संकल्पबद्ध किया। एक ऐसी मैडम को मेंटर चुना, जिन्होंने १४ साल की उम्र में १२वीं क्लास पास की और २५ साल की उम्र में पीएचडी। ऐसा इसलिए, ताकि मैं खुद को इंस्पायर्ड कर सकंू। आखिर मैंने उस मैडम से ही शादी भी कर ली। ये तीसरी कहानी लोगों को बहुत पसंद आई। मैंने इस कहानी पर तालियों की गडग़डाहट सुनी थी, तब बहुत खुशी महसूस हुई।