आय बढ़ाने के लिए किसान उत्पादन और रकबा दोनों बढ़ा रहे हैं, लेकिन अंधाधुंध कीटनाशक व खाद का उपयोग मिट्टी को सख्त बनाकर बंजर कर रहा है। वैज्ञानिकों की सिफारिश पर सरकारों ने जैविक खेती पर जोर देना शुरू किया है। हालांकि ज्यादा उत्पादन लागत के कारण यह मॉडल लोकप्रिय नहीं हो सका। अब सरकार ने प्राकृतिक खेती पर फोकस किया है। यह कम लागत वाली पारंपरिक खेती है। इस संबंध में किसानों द्वारा कराए गए रजिस्ट्रेशन में प्रदेश में इंदौर का स्थान 10वां है।
प्राकृतिक खेती इंदौर संभाग में - आठ जिलों में 40288 एकड़ जमीन खेती के लिए तैयार है। - झाबुआ में सबसे ज्यादा 9025 एकड़ है। किसानों की संख्या 958 है। - बड़वानी व खरगोन में किसानों की संख्या ज्यादा, लेकिन रकबा कम।
प्रदेश में - उज्जैन संभाग में किसान कम हैं, लेकिन रकबा प्रदेश के कुल रकबे 4,68,576 एकड़ में से 50 फीसदी से ज्यादा है। - 59,073 किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया, सबसे ज्यादा मंडला में 4612 किसान करीब 13000 एकड़ में खेती करेंगे।
--------- जैविक-प्राकृतिक में अंतर विशेषज्ञों के अनुसार, जैविक खेती की उत्पादन लागत ज्यादा है। खाद महंगी होती है। प्राकृतिक खेती घरेलू संसाधनों से की जा सकती है। इसके लिए देसी गाय जरूरी है, क्योंकि इसमें गाय के गोबर, गोमूत्र व पत्तियों से बनने वाली खाद व दवाइयों का उपयोग किया जाता है।
--------- प्राकृतिक खेती का फायदा - रसायन फ्री अनाज व उत्पाद मिलते हैं। - खेती की लागत कम होती है। - फर्टिलाइजर में कमी से विदेशी मुद्रा की बचत होगी। किसानों को ज्यादा सुविधाएं दी जा सकेंगी। - फसल की गुणवत्ता बढ़ने से लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा।
--------- संभाग के हाल जिला किसान रकबा (एकड़ में) बड़वानी 2130 5094 खरगोन 2052 7768 इंदौर 1567 3276 आलीराजपुर 1389 3312 खंडवा 1277 7184 झाबुआ 959 9025
धार 836 2729 बुरहानपुर 684 1899