हक के पैसों के लिए ढाई दशक से चल रही लड़ाई, कोर्ट ने पूछा - अब तक क्यों नहीं किया आवदेन
हुकमचंद मिल : 330 मजदूरों के परिजनों को मिलेगा हक का पैसा, मिल की जमीन के लैंड यूज को बदलने के मामले में दो दिन बाद फिर होगी सुनवाई

इंदौर. अपने हक के पैसों के लिए पिछले ढाई दशक से लड़ाई लड़ रहे हुकमचंद मिल के 5800 मजदूरों की 18 साल पुरानी याचिका पर मंगलवार को जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की एकल पीठ में सुनवाई हुई। मिल की जमीन के लैंड यूज को बदलने को लेकर पिछली सुनवाई को शासन की ओर से तर्क रखा गया था कि कोर्ट यदि इजाजत देगी तो हम चुनाव आयोग को पत्र लिख इजाजत मांगेंगे और लैंड यूज बदलने की कार्रवाई शुरू करेंगे। सोमवार को शासन की ओर से जानकारी दी गई कि सरकार के पास ऐसा अधिकार नहीं है कि वह सीधे चुनाव आयोग से परमिशन मांगे, कोर्ट का आदेश जरूरी है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते स्पष्टीकरण मांगा है। गुरुवार को याचिका पर फिर सुनवाई होगी।
20 जुलाई 2001 के पहले मिल के जिन 330 मजदूरों का निधन हुआ था, उनके वारिसों को पैसा देने को लेकर २६ मार्च को कोर्ट ने आदेश किए थे, लेकिन परिसमापक ने भुगतान करने से इनकार कर दिया था। सोमवार को उस मुद्दे पर भी सुनवाई हुई। मजदूरों और परिसमापक का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने 330 मजदूरों को पैसे देने के फिर आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट के आदेश पर मजदूरों की बकाया राशि के 22-22 प्रतिशत हिस्से का भुगतान किया जा चुका है, इन्हीं 330 का पैसा अटका हुआ था। सोमवार के आदेश के बाद उन्हें भुगतान शुरू हो जाएगा। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि काफी पुराना प्रकरण है, इसलिए आयोग की अनुमति मिलने के बाद जल्द से जल्द लैंड यूज बदलने की कार्रवाई शुरू करे। सुनवाई के दौरान मजदूर यूनियन के हरनाम सिंह धालीवाल और नरेंद्र श्रीवंश सहित अन्य मजदूर भी कोर्ट में उपस्थित थे। पूर्व में शासन की ओर से कोर्ट में एक शपथ पत्र पेश किया गया था कि मजदूरों के पैसे और मिल की जमीन के लैंड यूज बदलने के लिए सरकार संकल्पित है और जल्द ही सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा, लेकिन फिलहाल लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो गई है।
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