इंदौर

Live : खून से सना युवक तड़पते हुए मांग रहा था मदद, लोग मुंह ताकते रहे, ऑटो वाले भी नहीं रुके

शहर की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा करती एक और घटना सामने आई है।

इंदौरFeb 26, 2019 / 02:45 pm

हुसैन अली

Live : खून से सना युवक तड़पते हुए मांग रहा था मदद, लोग मुंह ताकते रहे, ऑटो वाले भी नहीं रुके

भूपेंद्र सिंह @ इंदौर. शहर की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा करती एक और घटना सामने आई है। इस बार वाकया बीआरटीएस पर हुआ, जहां वाहन दुर्घटना में घायल युवक देर तक तड़पता रहा, लेकिन किसी ने मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया। यहां तक कि ऑटो रिक्शा वाले भी उसे अस्पताल ले जाने को तैयार नहीं हुए। पत्रिका रिपोर्टर ने घायल को अस्पताल पहुंचाया।
समय : शाम 5 बजे स्थान : चिडि़याघर से जीपीओ टर्न पर

चिडि़याघर से जीपीओ जाने वाले मार्ग के टर्न पर युवक की गाड़ी फिसली और वह बीआरटीएस की रैलिंग जा टकराया। बहुत खून बहने से युवक सुधबुध खोने लगा। साथी युवक उसे उठाने की कोशिश करते हुए मदद की गुहार लगाता रहा, लेकिन किसी ने मदद को हाथ नहीं बढ़ाए। वहां खड़े लोग भी मूकदर्शक बने रहे। घायल का साथी लोगों से एंबुलेंस बुलाने का कहता रहा, लेकिन एंबुलेंस बुलाना तो दूर किसी ने बीच सडक़ में पडे़ घायल को उठाकर साइड में करने तक की नहीं सोचा। वहां से गुजर रहे ‘पत्रिका’ रिपोर्टर माजरा देख रुके और तुरंत मदद कर घायल को साइड में किया। इसी बीच एक वाहन चालक ने रिपोर्टर के कान में कहा, उसे पानी मत पिलाना और आगे बढ़ गया। चार पहिया और दोपहिया वाहन निकलते रहे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। एंबुलेंस का इंतजार करना मुनासिब नहीं समझ रिपोर्टर ने एक रिक्शा चालक से ले जाने का कहा, तो उसने साफ इनकार कर दिया। इतने में एक निजी अस्पताल की एंबुलेंस देख रिपोर्टर ने उसके ड्राइवर को अस्पताल ले चलने का कहा तो वो सोचने लगा। रिपोर्टर ने पैसा देने की बात कही तो तुरंत तैयार हो गया और घायल को एमवाय ले गया। इसके बाद पुलिस पहुंची।
लोकसभा स्पीकर ने भी जताई थी चिंता

कुछ दिन पहले भी ऐसी ही एक घटना के बाद लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र का ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने शहरवासियों की घटती संवेदनशीलता पर चिंता जताते हुए पुलिस से व्यवस्थाएं दुरुस्त करने का आग्रह किया था। बावजूद इसके न तो पुलिस ने कोई कदम उठाए न ही लोगों में संवेदनशीलता आई। यही वजह है कि लोग अब भी घायलों की मदद करने से बच रहे हैं। इस तरह के मामलों में, संवेदनाओं की मौत तो तब हो जाती है, जब देर से इलाज मिलने पर घायल की सांसें थम जाती है।

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