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आचार्य श्री का जीवन परिचय : सुरेंद्र से आचार्य श्री विद्यानंदजी बनने की गाथा

locationइंदौरPublished: Sep 22, 2019 10:49:11 pm

Submitted by:

bhupendra singh

1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में शामिल हुए, बद्रीनाथ पहुंचने वाले पहले जैन संत

आचार्य श्री का जीवन परिचय : सुरेंद्र से आचार्य आचार्य श्री विद्यानंदजी बनने की गाथा

आचार्य श्री का जीवन परिचय : सुरेंद्र से आचार्य आचार्य श्री विद्यानंदजी बनने की गाथा


इंदौर. आचार्य श्री विद्यानंदजी ने 95 वर्ष की उम्र में संल्लेखना समाधि ली। 1925 में शेडवाल, कर्नाटक में कालप्पाजी और सरस्वती के घर जन्मे सुरेंद्र उपाध्ये की प्रारंभिक शिक्षा दानवड़ में हुई। दानवड़ के स्कूल में भाषा की समस्या होने पर शांति सागर आश्रम में शिक्षा ली। महज 17 वर्ष की युवा अवस्था में देश की स्वतंत्रता के लिए 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। देश की आजादी के प्रति उनमें विशेष अनुराह रहा। स्वतंत्रता संग्राम के इन दिनों में ही उनका हृदय परिवर्तन हुआ। इसी बीच 1946 में आचार्य महावीर कीर्ति का शेडवाल में चातुर्मास हुआ। सुरेंद्र उपाध्ये ने 15 अप्रैल 1946 को तमदड्डी कर्नाटक में आचार्य महावीर कीर्ति से क्षुल्लक दीक्षा ली। उनका नामकरण क्षुल्लक पाश्र्वकीर्ति वर्णी रखा गया। कन्नूर में 1947 के चातुर्मास के बाद आचार्य माहवीर कीर्ति ने क्षुल्लकश्री को शांतिसागर आश्रम छात्रावास का अधिष्ठाता बनाया। वे 1948 से 1956 तक 8 वर्ष तक वहीं रहे। 1957 का चातुर्मास हुमचाजी में किया। 1958 व 1959 सुजानगढ़ तथा अन्य स्थानों पर चातुर्मास कर क्षुल्लकश्री 1962 में नईदिल्ली में आचार्य देशभूषण के शरण में पहुंचे। उनकी मुनि दीक्षा 25 जुलाई 1963 को नईदिल्ली में आचार्य देशभूषण के सानिध्य में हुई। उन्होंने ही मुनि विद्यानंद नाम दिया।
आचार्य श्री का जीवन परिचय : सुरेंद्र से आचार्य आचार्य श्री विद्यानंदजी बनने की गाथा
1969 में हिमालय की ओर विहार किया। एक चातुर्मास श्रीनगर उत्तराखंड में किया। पहली बार कोई दिगंबर जैन संत ब्रदीनाथ पहुंचे। वर्ष 1971 का चातुर्मास इंदौर में किया। उसके बाद महावीरजी मेरठ होते हुए 1974 में पुन: दिल्ली पहुंचे। नई दिल्ली में आचार्य देशभूषण ने 8 दिसंबर 1974 को विद्यानंद दी को उपाध्याय पद दिया। ऐलाचार्य पद 17 दिसंबर 1978 को नईदिल्ली में मिला। वर्ष 1969 का चातुर्मास पुन: इंदौर में हुआ। 20 जुलाई 1980 को श्रवण बेलगोला में मंगल प्रवेश किया। 1981 में बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक में शामिल हुए। 28 जून 1987 को आचार्य देशभूषण के आदेश पर संघ ने नईदिल्ली में विद्यानंद जी को आचार्य पद दिया।
जन्म दिनांक : 22 अप्रैल 1925
जन्म स्थान : शेडवाल, कर्नाटक

बचपन का नाम : सुरेंद्र उपाध्ये
पिता : कालप्पाजी

माता : सरस्वती
लौकिक शिक्षा : दानवड़

संगीत शिक्षा : तरल ग्राम

– सुरेंद्र से क्षुल्लक पाश्व कीर्ति – 1925 से 1946 तक
– क्षुल्लक पद से मुनि विद्यानंद – 1946 से 1963
– आचार्य विद्यानंद – 1987 से 2019
– श्रमण जीवन (वर्तमान में सर्वाधिक साधु जीवन) – सन 1946 से 2019 तक

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