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पुलिस का अजब गजब कारनामा : ‘हुस्ना’ की जगह ‘हुस्न’ को कर दिया जेल में बंद

locationभोपालPublished: Feb 22, 2020 02:43:57 pm

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया…

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भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस के कभी दावों को लेकर तो कभी उसकी कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठते रहते हैं। यहां तक की सुरक्षा में चूक के बाद सब कुछ कंट्रोल में होेने का दंभ भरने वाली इस पुलिस के कई गजब कारनामें तो हमेशा ही लोगों की चर्चा में बने हैं।

ऐसा ही एक मामला कुछ दिनों पहले इंदौर से सामने आया, जिसमें पुलिस की ओर से आरोपी की जगह दूसरे व्यक्ति को ही जेल में डाल दिया गया। ये वाक्या सामने आने के बाद जिसने भी इस बारे में सुना वह हक्काबक्का सा रह गया।

भले ही पिछले दिनों इंदौर पुलिस की गंभीर लापरवाही के एक मामले में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 68 वर्षीय व्यक्ति को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया, लेकिन इसके बाद भी जो कोई इस कारनामें के बारे में सुनता है, उसके चेहरे का रंग देखते ही बनता है।

जानकारी के अनुसार नाम की गफलत के कारण इस बेकसूर बुजुर्ग को हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाने वाले व्यक्ति के स्थान पर चार महीने तक जेल में बंद रखा गया। इस पूरे मामले में सबसे खास यह है कि वास्तविक दोषी की पैरोल पर छूटने के बाद साढ़े तीन साल पहले मौत हो चुकी है।

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IMAGE CREDIT: Patrika
दरअसल जब यह सजायाफ्ता कैदी पैरोल की अवधि खत्म होने के बावजूद जेल नहीं लौटा, तो उसके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी किया गया था। पुलिस ने मिलते-जुलते नाम की गफलत के कारण ‘हुस्ना’ के स्थान पर ‘हुस्न’ को गिरफ्तार कर 18 अक्तूबर 2019 को इंदौर के केंद्रीय जेल भेज दिया था। जनजातीय समुदाय से ताल्लुक रखने वाला यह 68 वर्षीय शख्स पढ़-लिख नहीं सकता और उसके बेकसूर होने की लाख दुहाई देने के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।
न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति शैलेंद्र शुक्ला ने धार जिले के हुसन (68) के बेटे कमलेश की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका मंजूर करते हुए यह फैसला सुनाया। धार जिले के एक हत्याकांड में सत्र अदालत ने ‘हुस्ना’ नाम के व्यक्ति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। जेल से पैरोल पर छूटने के बाद 10 सितंबर 2016 को उसकी मौत हो गई थी।
जब यह पूरा वाक्या सामने आया तो उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने इस बड़ी लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताते हुए आदेश दिया कि निर्दोष हुसन को फौरन जेल से रिहा किया जाए।

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पीठ ने पुलिस के एक अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओपी) के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला दर्ज करने का आदेश भी दिया। इस अधिकारी ने मामले में अदालत को हलफनामे में गलत जानकारी दी थी।
पीठ ने कहा कि उन सभी पुलिस कर्मियों के खिलाफ भी अदालत की अवमानना का मामला दर्ज किया जाए, जिन्होंने हुस्न की गलत गिरफ्तारी के वक्त संबंधित थाने के रोजनामचे में उसे ‘हुस्ना’ (मृत सजायाफ्ता कैदी) बताते हुए उसके बारे में अलग-अलग प्रविष्टियां दर्ज की थीं।
अदालत ने कहा कि यह मामला आरोपियों की सही पहचान किये बगैर बेकसूर लोगों को गिरफ्तार किये जाने की मिसाल है। लिहाजा निर्देश दिया जाता है कि गिरफ्तारी के सभी मामलों में संबंधित एजेंसियां आरोपियों की पहचान के लिये दस्तावेजी सबूतों के साथ ही बायोमीट्रिक प्रणाली का भी सहारा लेंगी, ताकि हुसन जैसे बेकसूर लोगों को दोबारा जेल न जाना पड़े।
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