इंदौर

एआरटीओ ने अपने कब्जे में लिए हजारों लाइसेंस, आवेदक दिनभर हो रहे परेशान

करीब तीन हजार लाइसेंस अटके
बाबुओं की निगरानी में बैठा दिया एवजी

इंदौरNov 29, 2019 / 07:43 pm

हुसैन अली

एआरटीओ ने अपने कब्जे में लिए हजारों लाइसेंस, आवेदक दिनभर हो रहे परेशान

इंदौर. आरटीओ कार्यालय में सबसे विवादित लाइसेंस शाखा में एक बार फिर एवजी, बाबू और अफसरों की जुगलबंदी के चलते हजारों आवेदक परेशान हो रहे हैं।
जानकारी के अनुसार विभाग के एक एआरटीओ ने लाइसेंस शाखा में बनने वाले पक्के लाइसेंस को अपने पास रखना शुरू कर दिया है। इन अफसर के पास करीब 3 हजार लाइसेंस रखे हुए हैं, जिसमें करीब हजार लाइसेंस तैयार हो चुके हैं। दरअसल आरटीओ कार्यालय में कुछ बाबू और अफसरों ने लाइसेंस शाखा में बनने वाले लाइसेंस का लेखा-जोखा रखना शुरू किया है। इसके लिए एक एवजी को भी तैनात किया गया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि लाइसेंस से होने वाली आय पर निगरानी रखी जा सके।
आरटीओ कार्यालय में लाइसेंस शाखा अफसरों के लिए दूध देती गाय है। एजेंट और एवजी के मार्फत बाबू-अफसर यहां से हर दिन बड़ी कमाई कर रहे हैं। इस मामले की जानकारी बड़े अफसरों को भी है, लेकिन सभी ने चुप्पी साध रखी है। हर एक लाइसेंस से विभाग को जहां 1500 रुपए का राजस्व मिलता है, वहीं इन एवजी-बाबू-अफसरों के ग्रुप को ६०० से 700 रुपए मिलते हैं। हर दिन आरटीओ 200 से 300 लाइसेंस बनते हैं।
दो बार हटाया लाइसेंस शाखा से

एआरटीओ हृदयेेश यादव के साथ बाबृू अंकित चिंतामन लाइसेंस का काम देख रहे हैं। जबकि आरटीओ ने बाबू चिंतामन को पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन संबंधित काम दिया है, लेकिन बाबू चिंतामन पूरे समय एआरटीओ यादव के साथ ही लाइसेंस का काम देख रहा है। बता दें कि बाबू चिंतामन को पहले भी दो बार लाइसेंस शाखा से हटाया जा चुका है।
बाबुओं की निगरानी में बैठा दिया एवजी

विभागीय सूत्रों के अनुसार लाइसेंस शाखा में रवि नाम के एवजी को काम पर लगाया गया है। रवि को जिम्मेदारी दी गई है। जितने भी लाइसेंस बन रहे हैं, उनकी एंट्री की जाए और किस बाबू, एजेंट और अन्य के नाम से बन रहे हैं, उनका रिकॉर्ड मेंटेन किया जाए। रवि पहले आरटीओ में ही कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम देख रड्डहा था।
एजेंट के बगैर नहीं होता कोई भी काम

प्रदेश सरकार का आरटीओ ऐसा विभाग है, जहां पर बिना एजेंट और एवजी के कोई काम नहीं होता है। अगर आवेदक खुद से अपना काम करवाने जाते हैं तो उसे एवजी और बाबू का कॉकस नियमों में ऐसे उलझा देता है कि आवेदक को मजबूरी में एजेंट का सहारा ही लेना पड़ता है।

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