संगठन चलाने के लिए भाजपा हर साल आजीवन सहयोग निधि इकट्ठा करती है। प्रदेश की आर्थिक राजधानी होने की वजह से हमेशा से संगठन को इंदौर से उमीद रहती है। सरकार होते हुए एक-एक करोड़ रुपए इक_ा करके दिए गए, लेकिन पिछले साल जब कांग्रेस सरकार काबिज हो गई तो सहयोगियों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। आंकड़ा ५५ लाख रुपए पर सिमट गया। उस अभियान के प्रभारी प्रदेश उपाध्यक्ष सुदर्शन गुप्ता थे, जिसकी असफलता का ठीकरा उनके माथे पर फोड़ दिया गया। इस बार भी ११ फरवरी यानी दीनदयाल पुण्यतिथि से अभियान की शुरुआत होने जा रही है। प्रदेश ने इंदौर को सवा करोड़ रुपए का लक्ष्य दे रखा है।
प्रदेश संगठन ने साफ कर दिया है कि पिछले साल जैसी स्थिति नहीं होनी चाहिए। अब पार्टी में मंथन चल रहा है कि किस नेता के कंधे पर जिम्मेदारी सौंपी जाए, जो लक्ष्य को पूरा कर सके। इस पर नगर अध्यक्ष गोपी नेमा ने विधायक रमेश मेंदोला का नाम सुझाया है। ऐसा करके उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया। मेंदोला को जिमेदारी सौंपने से पैसा इकट्ठा हो सकता है, वे शहर के बाकी नेताओं को भी काम पर लगा सकते हंै।
इस बहाने पिछले साल बिगड़ी सीआर सुधर जाएगी। लक्ष्य पूरा नहीं होता है तो ठीकरा मेंदोला के माथे फूट जाएगा। वे संगठन के सामने कमजोर साबित हो जाएंगे। बताते हैं कि इस बात की भनक मेंदोला को लग गई, जिसके चलते उन्होंने संगठन के बड़े नेताओं को जिम्मेदारी लेने से इनकार करते हुए बाहर से पूरी मदद करने की बात कही है।
कन्नी काट रहे कार्यकर्ता
15 साल सत्ता में रहने के बावजूद भी कई नेता और कार्यकर्ताओं को सरकार का कोई पद नहीं मिला। वे हमेशा खुद को ठगा महसूस करते रहे। हर बार पार्टी किसी न किसी लालच में उन्हें काम पर लगा देती। यही वजह थी कि पिछले साल जैसे ही सरकार गई, वैसे ही कार्यकर्ताओं व नेताओं ने हाथ खड़े करना शुरू कर दिए। कई ने तो कोरे रसीद कट्टे भी वापस कर दिए। नेताओं ने उन्हें संगठन में पद न मिलने सहित तमाम प्रकार की बात कही, लेकिन उन्होंने सभी को एक सिरे से खारिज कर दिया।
15 साल सत्ता में रहने के बावजूद भी कई नेता और कार्यकर्ताओं को सरकार का कोई पद नहीं मिला। वे हमेशा खुद को ठगा महसूस करते रहे। हर बार पार्टी किसी न किसी लालच में उन्हें काम पर लगा देती। यही वजह थी कि पिछले साल जैसे ही सरकार गई, वैसे ही कार्यकर्ताओं व नेताओं ने हाथ खड़े करना शुरू कर दिए। कई ने तो कोरे रसीद कट्टे भी वापस कर दिए। नेताओं ने उन्हें संगठन में पद न मिलने सहित तमाम प्रकार की बात कही, लेकिन उन्होंने सभी को एक सिरे से खारिज कर दिया।
मेंदोला नहीं तो वर्मा या देवांग गौरतलब है कि मेंदोला अगर नहीं बनते हैं तो अभियान का प्रभारी मधु वर्मा और कल्याण देवांग को बनाया जा सकता है। वर्मा के प्रभारी रहते हुए एक करोड़ रुपए का लक्ष्य पूरा किया गया था। वहीं, वर्मा के नहीं बनने पर देवांग के नाम पर विचार हो सकता है, जिन्होंने हाल ही में बिना विवाद के संगठन का चुनाव करवाया था।