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फोन घनघनाते ही जरूरतमंदों की जान बचाने दौड़ पड़ते हैं शहर के ये फरिश्ते

locationइंदौरPublished: Jun 14, 2019 04:34:57 pm

विश्व रक्तदान दिवस : शहर के रक्तदाताओं और सेवा समूहों को पत्रिका ने किया सम्मानित

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फोन घनघनाते ही जरूरतमंदों की जान बचाने दौड़ पड़ते हैं शहर के ये फरिश्ते

इंदौर. रक्तदान को महादान कहा जाता है। ये वो दान है जिससे किसी अनजान शख्स से भी खून को रिश्ता जुड़ जाता है है। जब तक उस व्यक्ति की सांसे चलती है तब तक न सिर्फ वो व्यक्ति बल्कि उसके परिजन रक्तदाताओं को ह्दय से धन्यवाद देते है। रक्तदाता जरूरतमंदो के लिए किसी फरिश्तों से कम नहीं होते है।
ऐसे ही इंसानी फरिश्तों को सम्मानित करने के लिए वल्र्ड ब्लड डॉनर्स डे की पूर्व संध्या पर पत्रिका की ओर से एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इसमें शहर के उन १४ लोगों को सम्मानित किया गया जिन्होंने रक्त का दान दूसरों के जीवन की रक्षा करने को अपने जीवन का ध्येय बना लिया। इस कार्यक्रम की सबसे खास बात यह थी इसमें हर उम्र के रक्तदाता शामिल थे। कुछ कहानियां तो हमे और आपको भी इस नेक कार्य से जुडऩे को प्रेरित करती है। इसमें सभी अवार्डी अपने परिजनों के साथ सम्मिलित हुए। जब इन रक्तदानियों को सम्मानित किया जा रहा था तब उनके परिजन फोटों और वीडियों बनाकर इन अनमोल लम्हों को सहेज रहे थे। जहां परिजनों के चेहरे पर हर्ष और गौरव झलक रहा था तो वहीं रक्तदानियों के चेहरे पर संतोष का भाव था। ये भाव हम सबसे कह रहे थे कि आओं जीवन रक्षा के लिए हम सब मिलकर रक्तदान का संकल्प ले।
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कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में एमवाय अस्पताल के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. अशोक यादव विशेष अतिथि के रुप में उपस्थित रहे। प्रोफेसर हिमांशु राय का स्वागत पत्रिका स्थानीय संपादक अमित मंडलोई व डॉ.यादव का स्वागत पत्रिका के इंदौर-भोपाल जोनल हेड आर.आर.गोयल ने किया। अतिथियों को स्मृति चिंह् भेंट किए गए। कार्यक्रम का संचालन अर्जुन रिछारिया ने व आभार जोनल एडिटर हरिओम पंजवानी ने माना।
कार्यक्रम की रुपरेखा रखते हुए पत्रिका के स्थानीय संपादक ने राजा शिवी और ऋषि दधिचि की कहानी के जरिए दान का महत्व बताया। उन्होंने कहा, रक्त किसी प्रयोगशाला में तैयार नहीं किया जा सकता है। उसके लिए मनुष्य की आवश्यकता होगी। मनुष्य में भी करूणाशील, सह्दय और मानवीय गुणों से परिपूर्ण मनुष्य की आवश्यकता होती है। जो इन गुणों से युक्त होगी वहीं रक्तदान कर पाएगा। ऐसे लोगों का सम्मान आने वाली पीढ़ी को एक प्रोत्साहन देता है।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में डॉ.अशोक यादव ने कहा, रक्तदान एक ऐसी चीज है जो धर्म और जाति की सारी दूरियां मिटा देता है। जब आप किसी व्यक्ति को रक्त दान करते है तो उस व्यक्ति से आपका खून का रिश्ता बन जाता है। बोनमेरो पेशेंट और कीमोथैरिपी पेशेंट को प्लेटलेट्स और प्लाजमा की जरूरत है रक्तदान से प्लेटलेट्स आदि बनाने का भी काम किया जा रहा है।
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बना ब्लड ट्रांसफ्यूजन डिपार्टमेंट

हम सिंगल डॉनर प्लेटलेट मशीन की एडवांस टेक्रॉलॉजी पर काम कर रहे है। आज मुझे बड़ी खुशी हो रही है ये बताते है हुए कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन डिपार्टमेंट नया बना है। एमवाय मध्यप्रदेश का पहला मेडिकल कॉलेज है जहां ये डिपार्टमेंट बना है। रक्तदान को लेकर कई तरह की भ्रांतियां अभी भी समाज में है ऐसा कहा जाता है कि पिता-पूत्र को डोनेट नहीं कर सकता है या कमजोरी आती है तो ऐसा कुछ नहीं है। इसके कई लाभ है जैसे कॉलेस्ट्रोल की समस्या नहीं होगी। जितना आप ब्लड डोनेट करेंगे उतनी ही ग्रोथ होगी।
आहार, निद्रा, भय और मैथुन, ये तो इन्सान और पशु में कोई अंतर नहीं है । इन्सान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है। धर्म का मतलब मत अथवा सम्प्रदाय से नहीं होता है। धर्म की परिभाषा वह है जो धारण किया जाए जैसे प्रकाश का धर्म रोशनी पैदा करना है उसी तरह मानव का धर्म है मानवता। मानवता का सबसे बड़ा चिंह् है संवेदना। जो व्यक्ति दूसरे की वेदना को अपनी वेदना समझकर उसे मिटाने का प्रयास करें वो संवेदनशील है। इसीलिए मैं आप सभी का आभार प्रकट करना चाहता हूं क्योंकि आप जैसे लोग ये बताते है कि मनुष्य और मानवता इस धरती पर जीवित है। ये बात इंदौर इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) इंदौर के डायरेक्टर प्रोफेसर हिमांशु राय ने गुरूवार को वल्र्ड ब्लड डॉनर्स डे पर आयोजित रक्तदाताओं के सम्मान समारोह कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में कही।
उन्होंने कहा, हमारे दर्शन में हैप्पीनेस के तीन प्रकार बताएं गए है सुख, शांति और आनंद। सुख आपको तब मिलता है जब आपकी ज्ञानेंद्रियों को कोई भौतिक अच्छी चीज दिखाई देती है। शांति मिलती है जब हम विद्या को ग्रहण करके मन को निंयत्रित करते है और आनंद तब मिलता है जब आपकी आत्मा को सुख प्राप्त होता है। इसके लिए आत्मा का तृप्त होना आवश्यक होता है और आत्मा तब तृप्त होती है जब किसी दूसरे व्यक्ति के लिए आप कुछ करते है और वो व्यक्ति आपको अंदर से धन्यवाद देता हूं। रक्तदान से बड़ा आप कोई दान कर ही नहीं सकते है। इसका मतलब आप जो रक्तदान कर रहे है हम जो शिक्षा देते है, ऋषि-मुनि जो ज्ञान की बातें करते है, आप सब उनसे कई ऊपर है।
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रक्त देने के लिए व्रत तोड़ा

बिजनेसमैन दीपक नाइक ने 90 के दशक में पहली बार 18 बरस की उम्र में कॉलेज में लगे एक ब्लड डोनेशन कैंप में रक्तदान किया था। तब से पिछले 27 बरसों में वे 110 बर रक्तदान कर चुके हैं। जैसे ही तीन महीने पूरे होते हैं वे एमवाय अस्पताल में रक्तदान कर देते है, या फिर किसी का कॉल आने पर तुरंत खून देने चले जाते हैं। दीपक ने बताया कि मैं हर महीने चतुर्थी का व्रत रखता हूं जिसमें पानी भी नहीं पीता। एक बार 16 चतुर्थी होने पर उद्यापन करना था लेकिन जब 12 वां व्रत चल रहा था तभी ब्लड देने के लिए कॉल आया। ब्लड देने से पहले कुछ खाना जरूरी होता है और मैने खा कर व्रत तोड़ दिया, क्योंकि मुझे उस क्षण महसूस हुआ कि व्रत से ज्यादा जरूरी किसी की जान बचाना है। मैने अपनी कार, बाइक और हेलमेट पर भी लिखवा रखा है कि मैं बी पॉजिटिव ग्रुप का रक्तदाता हूं
साइकिल से जाते थे खून देने

63 बरस के अरविंद अवस्थी एमपीईबी में अकाउंटैंट पद से रिटायर हुए हैं। कॉलेज में पढऩे के दौरान सन 1973 से रक्तदान का सिलसिला शुरू किया। वे बताते हैं उन दिनों मोबाइल फोन तो होते नहंी थे न मेरे पास बाइक थी। ऑफिस ेके नंबर पर लोग संपर्क करते थे और मैं साइकिल से चल देता था। बाद में ऑफिस के लोग मुझे गाड़ी देेने लगे। अब तक मैं 135 बार रक्त दे चुका हूं। बिना मोबाइल के भी मैने 300 लोगों का ग्रुप बना लिया था जो किसी भी वक्त रक्त देने के लिए दौड़ जाते हैं।
चार लाख लोग जुड़ गए कॉल सेंटर से

अशोक नायक बताते हैं कि दस साल पहले अस्पताल में एक महिला को खून के लिए रोते हुए देखा तो उसे तुरंत रक्त दिया और तभी से यह सिलसिला शुरू हो गया। मोबाइल पर रक्तदेने वाले दोस्तों का एक ग्रुप बनाया। लगातार यह कारवां बढ़ता चला गया और अब जिला प्रशासन ने मुझे ब्लड डोनेशन के लिए कॉल सेंटर का प्रभारी बना दिया है। इस कॉले सेंटर से अब तक ४ लाख जुड़ चुके हैं। अभी यह सेंटर १२ घंटे काम करत है पर बहुत जल्द यह २४ घंटे काम करने लगेगा।
जब 70 साल के बुजुर्ग ने पैर छू लिए

साल 2011 से रक्त मित्र इंडिया फाउंडेशन चला रहे यश पराशर बताते है कि मुझे वो क्षण सबसे भावुक लगा था जब हमने 23 साल के पेशेंट को 12 यूनिट ब्लड की मदद पहुंचाई। वे बड़वा के रहने वाले थे उन्होंने हमे मिलने को बुलाया। एक 70 वर्षीय बुजुर्ग ने हमारे पैर छूए और कहां कि तुमने हमारे घर के आखरी चिराग को बचा लिया तो मन में एक संतुष्टि का भाव आया। उन्होंने बताया कि चार स्टूडेंट्स विक्रम भारद्वाज, रवेंद्र बमभाले और संदीप शर्मा के साथ मिलकर इसकी शुरूआत की थी और आज देशभर में ५ लाख से ज्यादा रक्तमित्र हमसे जुड़ चुके है। मैं खुद भी अभी तक २६ बार ब्लड डोनेट कर चुका हूं।
एक जान बची तो फिर इसे ही बना लिया उद्देश्य

साल 2015 से सोच ब्लज ग्रुप चलाने वाले सत्यम त्रिपाठी बताते है कि हम कॉलेज में एक्सटर्नल दे रहे थे तब मेडिकल स्टूडेंट्स की तरफ से 8 यूनिट ब्लड की डिमांड आई। उस वक्त हमने मदद की तो दिल को काफी सुकून महसूस हुआ और उसके बाद से ही इस क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया। अब तक हम 800 से अधिक एक्टिव ब्लड डॉनर्स को अपने ग्रुप में जोड़ चुके है और मध्यप्रदेश के साथ ही देश के कुछ हिस्सों में भी मदद पहुंचाने का प्रयास करते रहते है।
एक नन्ही बच्ची से शुरू हुई पहल

साल 2015 से नमो नम रक्तदान ग्रुुप चलाने वाले सोनू व्यास बताते है कि साल 2013 तक हम कबाड़ से जुगाड़ कॉन्सेप्ट पर काम कर रहे थे। घर से निकलने वाले कबाड़ को कलेक्ट कर बेचते थे और उन पैसों का प्रयोग गरीब बच्चों के एडमिशन के लिए होता था। एक दिन मयूर हॉस्पिटल के बाहर परिजनों ने आठ साल की बच्ची के लिए ब्लड की जरूरत बताई तो हमने उस वक्त ब्लड की व्यवस्था करने के बाद इस क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया। अब हमारे ग्रुप में 70 से ज्यादा वॉलेंटियर्स है।
23 सालों से कर रही है काम

25 सालों से थेलेसीमिया एंड चाइल्ड वेलफेयर ग्रुप चला रही डॉ. रजनी भंडारी ने बताया कि साल 1994 में लॉयनेस क्लब की प्रेसीडेंट थी। उस वक्त थेलीसीमिया बीमारी की शुरूआत हुई थी। उस वक्त हमने बच्चों को इंजेक्शन लगवाने और अन्य मदद की थी। मैं प्रेसीडेंट के बाद भी मेरे पास इन बच्चों की परेशानियां आती रही उसके बाद मैंने 1996 में इस ग्रुप की संस्थापना की। इसके बाद से ही मैंने इन बच्चों को अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं रखा और 23 सालों से इनके लिए काम कर रही हूं।
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