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आठ साल की मासूम बच्ची ने भाई के लिए निभाया मां का फर्ज

locationइंदौरPublished: Aug 04, 2017 11:28:00 am

Submitted by:

amit mandloi

एक महीने तक सेवा कर 11 माह के भाई की बचाई जान, मां का दूध न मिलने से अति कुपोषित की श्रेणी में आ गया था भाई

brother and sisiter

देखरेख 8 साल की बहन ने की और मां का भी फर्ज निभाया

इंदौर @रीना शर्मा विजयवर्गीय. पिता के न होने पर बहन के प्रति अपने हर फर्ज को अदा करने वाले भाई तो आपने खूब देखे होंगे, लेकिन मां के न होने पर बहनें भी अपने फर्ज से पीछे नहीं हैं। एक ऐसी ही 8 साल की मासूम बहन, जिसे खुद माता-पिता के दुलार की जरूरत है, लेकिन मां के देहांत के बाद बहन ने ही अपने अति कुपोषित भाई की दिन-रात सेवा की और मौत के मुंह से बाहर निकाला।

11 महीने पहले कजलीगढ़ में एक महिला ने 8 साल की अरुणा की गोद में उसके 10 महीने के भाई दुर्गेश को देखा। वह उसके बीमार होने पर काफी चिंतित नजर आ रही थी। उसने बताया कि भाई बहुत कमजोर है। मां का देहांत इसके जन्म देते ही हो गया था। इसके चलते इसे दूध नहीं मिल पाया। पिता का भी कोई ठिकाना नहीं है। तब महिला की सूझ-बूझ से बच्चे की जानकारी पुलिस थाने और फिर चाइल्ड लाइन में भेजी गई और बच्चे का इलाज चाचा नेहरू अस्पताल में एक माह तक चला। डॉक्टरों ने तो बच्चे का इलाज किया, लेकिन उसकी असली देखरेख 8 साल की बहन ने की और मां का भी फर्ज निभाया। अब महिला बाल विकास ने इन बच्चों को संजीवनी सेवा केंद्र को सौंप दिया है।
brother ans sister
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रातों को भी संभाला
एक माह तक अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान अरुणा ने अपने दोनों भाई को हाथों से खाना खिलाया और उनका पूरा ध्यान रखा। कई बार रात में जब दुर्गेश रोता और मां के लिए बिलखता तो अरुणा ही उसे अस्पताल में लेकर घूमती और उसे चुप कराती। अरुणा ने कभी उसे मां होने का अहसास कराया तो कभी बड़ी बहन की तरह डांटकर भी चुप किया। कई बार भाई के रोने पर वह भी रो पड़ती थी। जिस तरह मां रातों को उठकर बच्चों को देखती है, उसी तरह अरुणा ने भी भाई को रातों को उठकर देखा। अब दुर्गेश पूरी तरह स्वस्थ भी है। दुर्गेश के साथ ही अपने 4 साल के भाई रवि को भी अरुणा ने मां की कमी महसूस नहीं होने दी।
बुलाएंगे डाइटिशियन
बच्चे की हालत में सुधार के लिए संस्था में डाइटिशियन को नियमित तौर पर बुलाया जाएगा। साथ ही बच्चे का पूरा ध्यान रखेंगे। तीनों बच्चों को यहां माता-पिता की कमी महसूस नहीं होगी।
आशा सिंह राठौर, अधीक्षिका, संजीवनी सेवा केंद्र

जरूरी है जागरूकता
महिला की जागरूकता से ही हमें बच्चे की जानकारी मिल पाई। पिता सुरेश टोकरी बनाने का काम करते हैं। वे तीनों बच्चों का लालन-पालन नहीं कर पाएंगे, इसलिए बच्चों को संजीवनी सेवा केंद्र में साथ रखा गया है।
वसीम इकबाल, डायरेक्टर, चाइल्ड लाइन
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