सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए चंद्रशेखर आजाद को एक बार 15 कोड़े मारने की सजा दी गई। वे हर कोड़े के वार के साथ वंदे मातरम और महात्मा गांधी की जय बोलते रहे। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। एक बार गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने आजाद बताया था, अपने पिता का नाम स्वतंत्रता और घर का पता जेल लिखवाया था। चंद्रशेखर ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और दूसरे साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश अफसर जेपी सान्डर्स की हत्या की प्लानिंग की थी।
समाजवादी क्रांति का किया आह्वान जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) एवं साण्डर्स गोलीकांड (1928) में सक्रिय भूमिका निभाई। अल्फ्रेड, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। आजाद ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ देश की आजादी के लिए संगठित हो प्रयास शुरू किए।
आखिरी गोली मार ली खुद को काकोरी कांड के बाद जब आजाद 27 फरवरी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे तभी उन्हें घेर लिया गया। एक घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रही। एक ओर पूरी फौज और दूसरी तरफ अकेले आजाद। जब गोलियां खत्म होने लगीं तो आखिरी गोली अपनी कनपटी पर मारकर आजाद ने अपना नाम आजाद सार्थक करते हुए शहीद हो गए।