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‘याद रखें, बचपन लौटकर नहीं आएगा, बच्चे कुछ कहने में संकोच करें तो समझें कोई दिक्कत है’

locationइंदौरPublished: Jul 01, 2019 01:42:03 pm

पत्रिका कार्यालय में मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार ने की पैरेंटिंग पर बात

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‘याद रखें, बचपन लौटकर नहीं आएगा, बच्चे कुछ कहने में संकोच करें तो समझें कोई दिक्कत है’

इंदौर. साहित्यकार और मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार रविवार को शहर में थे। इस मौके पर शाम को उन्होंने पत्रिका कार्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में पैरेंटिंग की चुनौतियों पर बात की। परिवारों का विघटन, बच्चों में डिप्रेशन, पढ़ाई, कॅरियर के दबाव, नई सामाजिक व्यवस्था में आ रहीे समस्याओं सहित उन्होंने कई विषयों पर बात की।
उन्होंने कहा, संस्कृति के कारण ही इंसान अन्य प्राणियों से अलग हैं और संस्कृति से ही संस्कार आते हैं। सही पैरेंटिंग के जरिए ही सही संस्कार दिए जा सकते हैं। डॉ. विनय कुमार ने कहा, परिवार में डेमोक्रेटिक माहौल हो। बच्चे अगर आपको कुछ बताने से डरते हैं, तो यह सही लक्षण नहीं है। पहले आप अपनी बातें उनके साथ शेयर करें तो वे भी अपनी बातें आपको बताएंगे। प्रजातांत्रिक माहौल में दोतरफा संवाद हो सकेगा। बच्चों में डिप्रेशन के केस बढ़ते ही जा रहे हैं। जब वे अपनी समस्याएं, ख्वाहिशें आपको बताएंगे तो डिप्रेशन से भी बचेंगे। पैरेंटिंग का सही प्रकार वही है जो डेमोक्रेटिक हो।
डॉ. विनय कुमार कवि भी हैं, इसलिए उन्होंने पैरेंटिंग को भी कविता में व्यक्त करते हुए मशहूर मनोचिकित्सक और शायर डॉ. सलमान अख्तर की पंक्तियां सुनाई ‘मां-बाप, भाई-बहन तो सब कहने की चीज हैं, परछाइयों का अपना अलग खानदान है।’ उन्होंने कहा, बच्चों के साथ आप कैसा व्यवहार करते हैं, उन्हें क्या सिखाते हैं, इससे एक परछाई बनती है। बच्चों को ईश्वर का रूप या ईश्वर के बच्चे कहा जाता है और अगर यह सही है तो फिर यह समझिए कि ईश्वर ने अपने बच्चे आपको पालने के लिए दिए हैं। यह याद रखा जाना चाहिए कि बच्चे का बचपन दोबारा लौट कर नहीं आएगा।
बच्चों के साथ करें संवाद

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उन्होंने कहा, ग्लोबलाइजेशन ने तमाम मूल्य बदल दिए हैं। पैरेंटिंग के लिए यह कठिन समय है। पहले तो संयुक्त परिवार थे, मोहल्ले के लोग भी परिवार में शामिल होते थे, लेकिन अब पैरेंटिंग केवल मां-बाप तक सीमित है। अब मां भी नौकरी कर रही है। एेसे में बच्चे के लिए किसी के पास वक्त नहीं है। बच्चों के साथ माता-पिता का संवाद नहीं बन पाता। बच्चे अकेले हो रहे हैं, इसलिए पैरेंट्स को बच्चों के लिए वक्त निकालना ही होगा। उनसे संवाद करें और उनका मन जानें। उनके साथ इन्वॉल्व हों। अक्सर बच्चे अपने दोस्तों के बारे में ज्यादा नहीं बताते, लेकिन फिर भी उनके साथ इन्वॉल्व होकर जानें कि वह किनके साथ ज्यादा रहता है, किनसे बात करता है।
बच्चों के रोल मॉडल बनें

उन्होंने कहा, माता-पिता बनना आसान नहीं है। पैरेंटिंग की शुरुआत बच्चे के जन्म से पहले से शुरू हो जाती है। अगर आप में कोई बुरी लत है तो पिता बनने से पहले उसे छोड़ दीजिए क्योंकि आप ही अपने बच्चे के रोल मॉडल होते हैं। आप रोल मॉडल बनेंगे तो उन्हें गाइड कर सकेंगे। आपकी भाषा, आपका व्यवहार इन सब के जरिए आप रोल मॉडल बन सकते हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. विनय कुमार का स्वागत स्थानीय संपादक अमित मंडलोई ने किया। कार्यक्रम में पद्मश्री जनक पलटा, आदि मौजूद थे। डॉ. विनय कुमार को स्मृति चिह्न पत्रिका के सिटी चीफ प्रमोद मिश्रा ने भेंट किया। इस मौके पर पत्रिका के यूनिट हैड एडमिन विजय जैन भी मौजूद थे।

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