आज को छोड़ दें तो मतदान को सिर्फ चार दिन बचे हैं। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व निर्दलियों को मिलाकर 19 महापौर व 341 पार्षद प्रत्याशी मैदान में हैं। वार्डों में भोजन-भंडारे सहित बैठकों के दौर चल रहे हैं, वहीं प्रत्याशी घर-घर जनसमर्थन मांगने पहुंच रहे हैं, वार्ड की समस्याओं को दूर कर विकास कार्य करने के दावे अलग कर रहे हैं। मतदान की तारीख नजदीक आते ही आरोप-प्रत्यारोप लगना शुरू हो गए हैं। भाजपा-कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के घोषित महापौर व पार्षद प्रत्याशियों के साथ निर्दलियों ने दम दिखाना शुरू कर दिया है, ताकि निगम पहुंचकर पार्षद के रूप में जनता का प्रतिनिधित्व कर सकें।
900 रुपए से अधिक नहीं जनता जिन प्रत्याशियों को पार्षद चुनकर निगम पहुंचाती है, उन्हें हर माह 6 हजार रुपए मानदेय और 225 रुपए बैठक भत्ता मिलता है। यह भत्ता निगम और उसकी समितियों की बैठक में भाग लेने पर महापौर, अध्यक्ष (सभापति) व पार्षदों को मिलता है। साथ ही यह भत्ता संबंधित वार्ड समिति की बैठकों में भाग लेने के लिए महापौर द्वारा वार्ड समिति में नाम निर्दिष्ट किए गए सदस्यों को भी मिलता है। हर माह 900 रुपए से अधिक भत्ता देय नहीं होता, वहीं एक दिन में एक से अधिक बैठकों में भाग लेने पर पार्षद को एक से अधिक भत्ता नहीं मिलता।
50 लाख रुपए पार्षद निधि पार्षद निधि 50 लाख रुपए रहती है। इसमें जनकार्य विभाग से संबंधित काम के लिए 25 लाख रुपए और ड्रेनेज एवं जल यंत्रालय विभाग से संबंधित कामों के लिए 25 लाख रुपए रहते हैं। इसके अलावा वार्ड में काम कराने के लिए पार्षद निगम बजट की अलग-अलग मद में रखी जाने वाली राशि का भी उपयोग करते हैं।
हर जोन पर महापौर निधि 22 लाख रुपए से ज्यादा निगम एक्ट में महापौर को हर सुविधा देने का प्रावधान है। इसमें कार से लेकर हर माह का अनलिमिटेड मोबाइल बिल और अन्य कई सुविधाएं शामिल हैं। महापौर को पारिश्रमिक 11 हजार रुपए और सत्कार भत्ता 2500 रुपए मिलता है। इस तरह हर माह 13500 रुपए महापौर को पारिश्रमिक मिलता है। इसके अलावा निगम के हर जोन पर 22 लाख 66 हजार रुपए महापौर निधि रहती है। निगम के 19 जोन हैं। यह निधि वार्ड में जनकार्य और जलकार्य विभाग से संबंधित काम करने पर खर्च होती है। दोनों विभाग की महापौर निधि मिलाकर 10 करोड़ रुपए के करीब होती है।

एमआईसी को अधिकार नहीं, फिर भी मिलती हर सुविधा पार्षदों में से मेयर-इन-कौसिंल (एमआइसी सदस्य) मेंबर्स की नियुक्ति होती है। इनका मानदेय भी 6000 रुपए महीना और भत्ता 225 रुपए ही होता है। निगम में जिस राजनीतिक दल की परिषद और महापौर बनते हैं, उसी दल के पार्षदों को एमआइसी मेंबर बनने का मौका मिलता है। महापौर की पसंद से ये मेंबर बनते हैं, जिन्हें निगम कानून-कायदे की किताब यानी एक्ट में कोई सुविधा न देने का प्रावधान है। इसके बावजूद इन्हें निगम मुख्यालय में बैठने के लिए सर्व-सुविधा युक्त कमरे के साथ 8 से 10 कर्मचारियों का स्टाफ दिया जाता है। एमआईसी मेंबर को निगम से कार लेने का अधिकार नहीं है, फिर भी यह सुविधा मेंबर को विभाग से संबंधित काम का निरीक्षण करने के नाम पर दी जाती है। साथ ही मोबाइल फोन और वायरलेस सेट भी इन्हें मिलते हैं। इनके चाय-पानी से लेकर नाश्ते का खर्च निगम ही उठाती है। हर माह हजारों रुपए बिल बनता है।
मांग उठी पर नहीं बढ़ाया मानदेय 2015 से 2020 तक पूर्व महापौर मालिनी गौड़ के नेतृत्व वाली परिषद में महापौर, सभापति और पार्षद का मानदेय बढ़ाने की मांग खूब उठी। पूर्व सभापति अजय नरूका, पूर्व नेता प्रतिपक्ष फौजिया शेख अलीम सहित कई पार्षदों ने यह मांग उठाई और परिषद में प्रस्ताव पास कर राज्य सरकार को भी भेजा, लेकिन प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ। मानदेय नहीं बढ़ा। हालांकि पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे के कार्यकाल में पार्षदों, सभापति और महापौर का मानदेय बढ़ा था। उन्होंने सरकार के जरिए निगम एक्ट में संशोधन करवाकर मानदेय बढ़वाया था। पहले पार्षद को 4500 रुपए और महापौर को 8000 रुपए मिलते थे।