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इंदौर

पट्टाधारियों का नवीनीकरण भूला प्रशासन

एसडीएम कार्यालय में धूल खा रहा रेकॉर्ड : 1984 में गरीबों को आवास के लिए दिए थे 25 हजार पट्टे

इंदौरDec 05, 2020 / 02:40 am

रमेश वैद्य

पट्टाधारियों का नवीनीकरण भूला प्रशासन

पट्टाधारियों का नवीनीकरण भूला प्रशासन

इंदौर. 1984 में गरीबों को छत देने के लिए आवासहीन हजारों लोगों को पट्टों का वितरण किया गया था। इनकी मियाद खत्म हुए 6 साल से अधिक हो गए, लेकिन किसी का नवीनीकरण नहीं हुआ। इसके लिए सभी एसडीओ को जवाबदारी देकर रजिस्टर सौंपे गए थे। लंबा समय बीत गया, लेकिन रेकार्ड धूल खा रहा है।
शहर में रहने वाले गरीबों को छत देने के लिए मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एक घोषणा की थी। पट्टे वितरण के लिए सरकार ने अभियान चलाया था, जिसमें लगभग 25 हजार लोगों को इंदौर में पट्टे दिए गए। इन पट्टों का वितरण 30 साल के लिए किया गया था। जिनकी अवधि 2014 में समाप्त हो गई। तीन साल मंथन करने के बाद सरकार ने पट्टों के नवीनीकरण को लेकर योजना बनाई थी, उसमें पट्टाधारी को बहुत कम राशि चुकाना थी।
चार साल पहले सरकार के निर्देश आने पर तत्कालीन कलेक्टर पी नरहरि ने सभी एसडीएम को नोडल अधिकारी बनाया। उसके बाद नवीनीकरण करने का अधिकार दिया। साथ में शहर विकास अभिकरण (डुडा) को निर्देश दिए गए कि वे अपने एसडीएम एरिया अनुसार रेकॉर्ड भेज दें। इस पर डुडा ने आवेदन के पत्रक और रेकॉर्ड को भेज दिया। मजेदार बात ये है कि आज तक एक भी पट्टे का नवीनीकरण नहीं हो सका है। सच्चाई ये है कि किसी भी एसडीएम ने इस काम में रुचि ही नहीं ली।
बदला स्वरूप
गौरतलब है कि 1984 में कई ऐसी जगहों पर भी पट्टे दिए गए थे, जो इन दिनों मुख्य बाजार या मेन रोड पर आ गए हैं। पट्टाधारियों ने रहने के बजाए दुकानें बनाकर किराए पर दे दी या बेच दीं। पट्टों का मूल स्वरूप बिगाड़ दिया, लेकिन मजबूरी हो गई कि जब तक कोई शिकायत या जांच न हो घोटाला पकड़ में नहीं आ सकता है। ऐसे लोगों की संख्या काफी है। वे ही लोग पट्टों का नवीनीकरण करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
मांगी थी जानकारी
चार साल पहले पट्टे के नवीनीकरण को लेकर निर्देश दिए थे। सरकार की समीक्षा में पूछा गया तब तत्कालीन कलेक्टर व शहरी विकास अभिकरण के प्रभारी ने जानकारी मांगी थी। वैसे तो अभियान को दिसंबर 2018 में ही पूरा हो जाना था। धीरे-धीरे चार साल से अधिक हो गए। पूर्व कलेक्टर निशांत वरवड़े तो ठीक लोकेश कुमार जाटव ने भी कई पत्र लिखे थे, पर मामला वहीं का वहीं है।
पट्टाधारियों ने बनाई दूरी : पट्टेदारों को मालूम है कि आवेदन किया, तो पैसे चुकाने पड़ेंगे। इससे अच्छा है जैसा चल रहा है वैसा चलने दो। इधर, नवीनीकरण का काम तो हुआ नहीं, बल्कि रेकॉर्ड की हालत जरूर खराब हो गई। रद्दी की तरह एसडीएम के रीडरों के यहां पड़ा है, जबकि इसे बकायदा अलमारी में रखा जाता था।
तो होगा घोटाला उजागर
लोगों ने अहस्तांतरणीय होने के बावजूद पट्टों को बेच दिया है। बात यहां तक सीमित नहीं थी, सरकारी महकमें की सांठगांठ से उनकी रजिस्ट्री भी हो गई। कई जगहों पर तो पट्टों की जगह पर दुकानें तैयार हो गई हैं, तो कुछ जगह बिल्ंिडग तन गई। एक बड़ी वजह ये भी है कि पट्टाधारी रिन्यूअल कराने नहीं आ रहे हैं।
लाखों हो गई है पट्टों की कीमत
वैसे तो पट्टों का जाल पूरे शहर में फैला हुआ है, लेकिन इनमें लगभग 140 बस्तियां भी हैं। इसमें पंचम की फैल, गोमा की फैल, गोटू की चाल, पाटनीपुरा, संविद नगर, कड़ाबीन, कुलकर्णी भट्टा, शीलनाथ कैम्प, रुस्तम का बगीचा, अमीर पहलवान की चाल, खजराना, पालदा, शिव नगर, मूसाखेड़ी, शांति नगर, बारामत्थ, सिंधी कॉलोनी, अर्जुनपुरा, जूना रिसाला, अहिल्या पल्टन और बक्शीबाग आदि प्रमुख हैं। इनमें से कई तो ऐसी जगह हैं, जहां पर मुख्य मार्ग आ गया है। इन पट्टों के प्लॉट की कीमत डेढ़ से दो करोड़ रुपए हो गई है। सामान्य बस्तियों में भी मकानों की कीमत लाखों रुपए में है।
निर्देश दिए
1984 के पट्टों के नवीनीकरण को लेकर सभी एसडीओ को पूर्व से निर्देश दिए गए है। अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं हुई।
प्रवीण उपाध्याय, प्रभारी शहर विकास अभिकरण

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