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कांग्रेस का आरोप, संघ से जुड़े हैं आंखफोड़वा अस्पताल के डॉक्टर, सुमित्रा महाजन का मिला हुआ है संरक्षण

locationइंदौरPublished: Aug 19, 2019 01:58:09 pm

Submitted by:

Muneshwar Kumar

indore eye hospital: जानिए, मध्यप्रदेश में हुए आंखफोड़वा कांड के अस्पताल का आरएसएस से क्या कनेक्शन है।

indore eye hospital
इंदौर. मध्यप्रदेश के इंदौर आई अस्पताल में ऑपरेशन के बाद 11 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। इस मुद्दे पर सरकार सख्त है। वहीं, बीजेपी सरकार पर गंभीर आरोप लगा रही है। सरकार ने कार्रवाई करते हुए इंदौर आई अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया है। इस बीच कांग्रेस ने एक बड़ा आरोप लगा है। जिसमें पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और इंदौर की सांसद रहीं सुमित्रा महाजन को घसीटा है।

कांग्रेस नेता और प्रदेश सचिव राकेश सिंह ने इस मुद्दे पर डॉक्टरों के खिलाफ बीजेपी की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए, यह गंभीर आरोप लगाया है। राकेश सिंह ने कहा है कि इंदौर में जब से आई अस्पताल शुरू हुआ है, इस अस्पताल के सारे संस्थापक आरएसएस के सदस्य रहे हैं। राकेश ने आरोप लगाया कि अस्पताल के दोनों डॉक्टर सुधीर महाशब्दे और सुभाष बांडे संघ आरएसएस के पूर्णकालिक सदस्य हैं। इसके साथ ही राकेश सिंह ने कहा है कि बीजेपी नेता जयंत भिसे आई हॉस्पिटल में भागीदार हैं।
 

सुमित्रा महाजन का संरक्षण प्राप्त
राकेश सिंह ने कहा कि इस अस्पताल में पहले भी कई लोगों के आंखों की रोशनी चली गई थी। कांग्रेस नेता ने सवा उठाया है कि उस घटना के बाद जब अस्पताल का लाइसेंस रद्द हो गया था। फिर रिन्यूवल कैसे हुआ। राकेश सिंह ने कहा कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के दबाव में इस अस्पताल का लाइसेंस रिन्यू किया गया। इस अस्पताल को उनका सरंक्षण प्राप्त है, इसीलिए बीजेपी के लोग प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। इस अस्पताल का सालों से लीज नहीं भरा गया है। ऐसा इसलिए हुआ कि अस्पताल को सुमित्रा महाजन का सरंक्षण प्राप्त था।
indore eye hospital
 

कांग्रेस ही कर रही है प्रदर्शन
कांग्रेस सचिव राकेश सिंह ने कहा कि सोचिए, कांग्रेस की सरकार है, कांग्रेस के लोग ही डॉक्टर के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी इस पूरे मामले पर मौन धारण किए हुए हैं। इंदौर बीजेपी की पूरी टीम सुमित्रा महाजन से डरी हुई है। उन्हें पता है कि इस अस्पताल को किसका संरक्षण प्राप्त है, इसलिए वे लोग सड़क पर नहीं उतर रहे हैं। ये बीजेपी के वो काले कारनामे हैं, जिसे हमारे सीएम कमलनाथ धो रहे हैं। अब शिवराज सिंह चौहान के इस पर बोलना चाहिए। इसका प्रमाण ये है कि इस अस्पताल का लाइसेंस बीजेपी के शासनकाल में रिन्यू हुआ। पूरा इंदौर जानता है कि चुनावों में ये दोनों डॉक्टर किसके साथ रहते हैं। दोनों डॉक्टर आरएसएस के कार्यालय में नियमित रूप से जाते हैं।
indore eye hospital
 

मुआवजे पर शिवराज का सवाल
कमलनाथ की सरकार ने पीड़ितों के लिए मुआवजे का ऐलान किया था। उसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा था कि इंदौर में जिन 11 नागरिकों का जीवन डॉक्टर्स की लापरवाही के कारण अंधकारमय हो गया, उन्हें मात्र रु. 50,000 की सहायता राशि देकर क्या कमलनाथ सरकार कोई उपकार कर रही है? उस व्यक्ति की मानसिक अवस्था के बारे में तो सोचें जिसके साथ इतनी बड़ी त्रासदी गैरज़िम्मेदाराना रवैये के चलते हुई।
https://twitter.com/ChouhanShivraj/status/1162972524818251776?ref_src=twsrc%5Etfw

शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि इंदौर सीएमएचओ ने 5 दिनों तक आला अधिकारियों से इस मामले को छुपा कर रखा। अस्पताल प्रबंधन के साथ ही शासन-प्रशासन की तरफ से भी यह बहुत बड़ी चूक है। राज्य सरकार से अनुरोध है कि सभी पीड़ितों को उचित सहायता राशि व प्रतिमाह रु.12,000 पेंशन दी जाए जिससे उनका जीवन सुखमय व्यतीत हो सके।
https://twitter.com/tulsi_silawat/status/1163073981387177984?ref_src=twsrc%5Etfw
 

शंकर नेत्रालय के डॉक्टर कर रहे इलाज
वहीं, जो पीड़ित लोग हैं, उनका इलाज शंकर नेत्रालय के डॉक्टर कर रहे हैं। सरकार इन मरीजों को एयरलिफ्ट करवाने की तैयारी भी कर रही है। उन्होंने का कि इंदौर के आई हॉस्पिटल में आंखों की रोशनी गंवाने वाली घटना के लिए प्रभावित मरीजों एवं परिजनों से मैं क्षमा चाहता हूं। साथ ही मैं विश्वास दिलाता हूं कि घटना की निष्पक्ष जांच करवाकर दोषियों को दंडित किया जाएगा।
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पूर्व में भी फेल हो चुके हैं ऑपरेशन
गौरतलब है कि इंदौर आई हॉस्पिटल में दिसंबर 2010 में भी मोतियाबिंद के ऑपरेशन फेल हो गए थे, जिसमें 18 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इस पर तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. शरद पंडित ने संबंधित डॉक्टर व जिम्मेदार कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुशंसा की। 24 जनवरी 2011 को अस्पताल को मोतियाबिंद ऑपरेशन व शिविर के लिए प्रतिबंधित कर दिया। ओटी के उपकरण, दवाइयां, फ्ल्यूड के सैंपल जांच के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज की माइक्रोबायोलॉजी लैब भेजे गए। इसके बाद शिविरों के लिए सीएमएचओ की मंजूरी अनिवार्य कर दी। कुछ महीने बाद अस्पताल पर पाबंदियां रहीं, फिर इन्हें शिथिल कर दिया।
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