नगर निगम चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। प्रदेश की अधिकतर नगर निगम के नवंबर-दिसंबर में चुनाव हैं तो इंदौर के चुनाव जनवरी में होना हैं। चुनाव को लेकर स्थानीय निर्वाचन विभाग ने भी काम शुरू कर दिया है, सिर्फ वहीं नगर निगम या नगर पंचायत में मतदाता सूची का काम नहीं हो रहा है जहां परिसीमन की गुत्थी उलझी हुई है। चुनाव को छह माह आगे बढ़ाए जाने की संभावना भी मजबूत है।
इसके साथ कांग्रेस की मंशा है कि पूरे प्रदेश की नगर निगमों में महापौर के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाएं। कांग्रेस की रणनीति को भाजपा भांप गई है। इसके चलते पार्टी ने ताबड़तोड़ नगरीय निकाय चुनाव की एक समिति बनाकर वरिष्ठ नेता व पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे को उसका मुखिया बना दिया।
समिति में पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता, सांसद विवेक शैजवलकर, राजेंद्र आमरेकर व एसएस उप्पल को लिया गया। समिति ने तय किया है कि सरकार प्रस्ताव लेकर आए उससे पहले ही विरोध में माहौल बनाया जाए ताकि अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव न हों। इसको लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के फैसले को सामने रखा जाएगा।
आसान नहीं होगी राह
इंदौर नगर निगम के चुनाव भले ही छह माह देरी से होंगे, लेकिन कांग्रेस नेता वार्डों के परिसीमन को लेकर मशक्कत कर रहे हैं। विधानसभा स्तर पर वार्डों का विभाजन होगा, जिसमें वे कोशिश कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा वार्ड कैसे जीते जा सकते हैं। उन्हें मालूम है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होगा तो नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। ज्यादा से ज्यादा वार्ड जीतकर अपना महापौर बनाया जा सकता है। हालांकि ये राह भी कांग्रेस के लिए इतनी आसान नहीं होगी।
इंदौर नगर निगम के चुनाव भले ही छह माह देरी से होंगे, लेकिन कांग्रेस नेता वार्डों के परिसीमन को लेकर मशक्कत कर रहे हैं। विधानसभा स्तर पर वार्डों का विभाजन होगा, जिसमें वे कोशिश कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा वार्ड कैसे जीते जा सकते हैं। उन्हें मालूम है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होगा तो नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। ज्यादा से ज्यादा वार्ड जीतकर अपना महापौर बनाया जा सकता है। हालांकि ये राह भी कांग्रेस के लिए इतनी आसान नहीं होगी।