तीसरे लॉक डाउन ने महाराष्ट्र के उद्योगपतियों व ठेकेदारों तो ठीक छुट्टा काम करके आजीविका चलाने वाले मजदूरों की कमर तोड़ दी। उन्हें अपने घर जाने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आया। जिनके पास जो साधन थे, वह उससे चल पड़ा और कुछ नहीं होने वाले पैदल चले गए। अधिकतर मजदूर एमपी, यूपी और बिहार के थे, जिसका असर मानपुर से लेकर देवास तक के बायपास पर देखने को मिला।
अब गुजरने का सिलसिला कम हो गया है। इसके पीछे महाराष्ट्र सरकार की योजना काम कर रही है। पलायन करने वाले मजदूरों को मुंबई, पुणे और नासिक जैसे शहरों में रोक दिया गया। उनके लिए ट्रेन की व्यवस्था शुरू कर दी गई, जो सीधे यूपी के लिए जा रही है। अभी तक एक दर्जन से अधिक ट्रेनें चलाई जा चुकी हैं।
मजदूरों को भी समझ में आ गया कि बसों में धक्के खाने से अच्छा है ट्रेन के लिए एक-दो दिन रुक जाएं। बड़ी संख्या में मजदूर तीनों शहरों में रुक गए हैं। इसी वजह से कि बायपास पर वाहनों की संख्या कम नजर आ रही है। हालात को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि एक दो दिन में जाने वालों का सिलसिला लगभग बंद हो जाएगा।
नहीं मानने वाले उठा रहे परेशानी
कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, ठीक ऐसी ही स्थिति मजदूरों की हो रही है। कई मजदूरों को सरकार ने स्कूलों में क्वॉरन्टीन कर रखा था। उसकी वजह से वे डरे हुए हैं। ट्रेन में छोडऩे के लिए रोकने की बात करने के बावजूद वे मानने को तैयार नहीं हैं और बसों से सेंधवा पहुंच रहे हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम है। अब वे ही बसों में नजर आ रहे हैं।
कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, ठीक ऐसी ही स्थिति मजदूरों की हो रही है। कई मजदूरों को सरकार ने स्कूलों में क्वॉरन्टीन कर रखा था। उसकी वजह से वे डरे हुए हैं। ट्रेन में छोडऩे के लिए रोकने की बात करने के बावजूद वे मानने को तैयार नहीं हैं और बसों से सेंधवा पहुंच रहे हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम है। अब वे ही बसों में नजर आ रहे हैं।
कम हुए खुद की गाड़ी वाले महाराष्ट्र में रहकर खुद की गाड़ी चलाकर रोजी-रोटी कमाने वालों ने वाहनों से पलायन शुरू कर दिया था। सैकड़ों में ऑटो रिक्शाओं और माल वाहनों से रवाना हुए। अब इनकी भी संख्या बहुत कम हो गई है। वहां के बड़े शहरों के अलावा कुछ जगहों के मजदूर जरूर किराए से लोडिंग गाड़ी लेकर घर के लिए जा रहे हैं।
मजदूर कम सेवक ज्यादा
इंदौरियों का जज्बा सलाम करने योग्य है। मजदूरों की पीड़ा को देखकर सैकड़ों की संख्या में लोग बायपास पर पहुंच गए और सेवा काम में जुट गए। पानी, चाय, नाश्ता, खाना, एनर्जी ड्रिंक, फल, बिस्किट, जूते-चप्पल से लेकर तमाम स्टाल लगाए गए। यहां तक कि डॉक्टरों ने क्लीनिक भी खोल दिए। अब हालत ये है कि मजदूर से ज्यादा सेवा करने वाले हो गए हैं। इसमें से कई लोग तो सेल्फी लेने और फोटो खिंचवाने से खुश हैं।
इंदौरियों का जज्बा सलाम करने योग्य है। मजदूरों की पीड़ा को देखकर सैकड़ों की संख्या में लोग बायपास पर पहुंच गए और सेवा काम में जुट गए। पानी, चाय, नाश्ता, खाना, एनर्जी ड्रिंक, फल, बिस्किट, जूते-चप्पल से लेकर तमाम स्टाल लगाए गए। यहां तक कि डॉक्टरों ने क्लीनिक भी खोल दिए। अब हालत ये है कि मजदूर से ज्यादा सेवा करने वाले हो गए हैं। इसमें से कई लोग तो सेल्फी लेने और फोटो खिंचवाने से खुश हैं।