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शीर्ष अदालत के निर्देश पर कैदियों को पेरोल मंजूर, बुजुर्ग को नहीं छोड़ा और अब जान पर बनी

locationइंदौरPublished: May 04, 2020 10:36:54 am

Submitted by:

Mohit Panchal

पहले कोरोना के क्वॉरन्टीन सेंटर में भर्ती, अब बड़े अस्पताल में इलाज

शीर्ष अदालत के  निर्देश पर कैदियों को पेरोल मंजूर,  बुजुर्ग को नहीं छोड़ा और अब जान पर बनी

शीर्ष अदालत के निर्देश पर कैदियों को पेरोल मंजूर, बुजुर्ग को नहीं छोड़ा और अब जान पर बनी

इंदौर। जेल प्रशासन की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। पैरोल मिलने के बावजूद एक बुजुर्ग कैदी को नहीं छोड़ा गया। बाद में कोरोना संक्रमण को देखते हुए उसे क्वॉरन्टीन सेंटर भेजा गया, जहां तबीयत खरीब होने पर वह एमवाय अस्पताल में जीवन से संघर्ष कर रहा है।
कोरोना के कहर को देखते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने उम्र कैद की सजा काट रहे कैदियों को लेकर निर्देश जारी किए। साफ कहा गया कि जिन कैदियों को पहले पैरोल दी जाती रही है, उन्हें दो माह के लिए छोड़ दिया जाए। इंदौर की सेंट्रल जेल में बंद ५०० के करीब कैदियों को छोड़ा गया। यहां तक कि इंदौर जिला तो ठीक धार, झाबुआ, खंडवा और खरगोन के कैदियों को भी बसों से रवाना किया गया।
इसमें कुछ कैदियों को नहीं छोड़ा गया, जिसमें उम्र कैद की सजा काट रहे बाणगंगा निवासी रमेश हीरालाल भी हैं। ७० साल के इस कैदी को इसलिए नहीं छोड़ा गया कि बेटे ने जेल प्रशासन को ये लिखकर दे दिया कि घर पर उनकी कोई देख-रेख करने वाला नहीं है। वहीं पर रहने दिया जाए, जबकि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश था। बड़ी बात ये है कि उसके बड़े बेटे रवि रमेश को छोड़ दिया गया।
सवाल उठ रहे हैं कि जब बड़े बेटे को छोड़ा गया तो घर पर संभालने वाला भी है। ऐसे में छोटे बेटे के कहने पर उसे रिहा क्यों नहीं किया गया? सुप्रीम कोर्ट ने जिस डर के कारण कैदियों को छोड़ा रमेश के साथ भी वहीं हुआ। जेल में कोरोना का संक्रमण फैला तो बड़ी संख्या में कैदियों को असरावद खुर्द के सेंटर में भेजा गया। उसमें रमेश भी शामिल था।
एक दर्जन से अधिक कैदियों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया। कई की जांच रिपोर्ट आना अभी बाकी है। तीन दिन पहले अचानक तबीयत खराब होने पर रमेश को एमवायएच में भर्ती किया गया। बताया जा रहा है कि गंभीर स्थिति में है और जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है।
होना चाहिए प्रशासनिक जांच

गौरतलब है कि हत्या के प्रकरण में रमेश और उसके दो बेटे रवि और गोकुल आजीवन कारावस की सजा काट रहे हैं। इसमें से रमेश ओर रवि को पूर्व में पैरोल हो चुकी थी, जिसके अनुसार कोरोना संकट में खुद ब खुद पैरोल मंजूर हो गई। इस पर बड़े बेटे रवि को छोड़ दिया गया और रमेश व गोकुल को जेल में ही रखा गया, जबकि रमेश पैरोल का हकदार था।
गोकुल के पत्र अनुसार उसे जेल में रखा गया जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उसके पत्र का कोई वजूद नहीं है। ऐसे में जेल प्रशासन ने उसे कैसे रख रखा था इसको लेकर प्रशासन को जांच करना चाहिए। दोषियों पर कड़ी कार्रवाई भी की जाना चाहिए।

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